“हे सुख दु: ख मनमाँ न आणीये, घट साथे रे घडिया, टाळ्या ते कोई ना नवँ टळे ” अर्थात: “ सुख दुख समेकृत्वा लाभालाभौ जयाजयो ” जैसी बात कही है-कि, हे मन! सुख या दुख मन मेँ न ला! जिस पल ये शरीर घटीत हुआ, हर घडी का हीसाब भी रचा गया-जिन्हेँ कोई टाल नहीँ पाता ” इसी तरह, हर हाल मेँ जीने की और परम्` से लगन लगाये रखने की क्रिया जारी है--और, जीवन भी! उम्दा आलेख पर स्नेह सहित बधाई!-लावण्या