मेरी हास्य कथा “कौन बनेगा ब्लागपति” पर आपके विचार मिले! अपने ठीक कहा है यह जागरण वालो की ही चाल है!
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चाहे वो सामाजिक हो, हास्य कथा हो अथवा सांइस फिक्शन, आप चाहे तो एक बड़ा सा उपन्यास भी शुरु कर सकते है।
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टेरी प्रेचेट की हास्य कथा थीफ ऑफ़ टाइम ', साइमन हॉक की ' टाइम वार्स ', आइसक एसिमोव की ' द एंड ऑफ़ इटर्निटी ' तथा दूरदर्शन धारावाहिक ' डॉ. हू ' है।
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हास्य कथा के फलक को विस्तार देने वाली कहानियों में यादवेन्द्र शर्मा ' चन्द्र' की ' टिड्डी पुराण ' और सरोजनी प्रीतम की गिनती लाल की छींक ' का जिक्र भी जरूरी लगता है जिनमें हास्य की सहज बानगी देखने को मिलती है।
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क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी बोध कथाओं को हास्य कथा मानते हैं? क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी अपने फर्जी ब्लॉग में माडरेशन लगाये हुए हैं?क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी का गोविन्द से क्या सम्बन्ध है?
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गुजराती के हास्य कथा लेखक ज्योतिन्द्र दवे (1901-1980) के जीवन एवं लेखन पर पिछले कई वर्षों से शोध कार्य में लिप्त उर्विश कोठारी (अहमदाबाद) को गुजराती भाषा में प्रकाशित बे घड़ी मोज के एक अंक में उपरोक्त साक्षात्कार पढने को मिला।
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बाल कहानी संग्रह: मैं स्कूल जाऊंगी (मनोवैज्ञानिक बालकथा संग्रह, वर्ष-1996), सपनों का गांव (पर्यावरण परक बालकथा संग्रह, वर्ष-1999), चमत्कार (बाल विज्ञान कथा संग्रह, वर्ष-1999), हाजिर जवाब (बाल हास्य कथा संग्रह, वर्ष-2000), कुर्बानी का कर्ज (साहसिक कथा संग्रह वर्ष-2000),
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बहुत बढ़िया! आपने तीन मुख्य पात्रों को एक लघु हास्य कथा द्वारा दर्शा दिया, अर्थात नारद हैं ब्रह्मा यानि सूर्य की किरणें जो लोक-परलोक विचरण करती हैं ' नारायण, नारायाण ' कहती (जैसी तार-वाद्य, सरस्वती वीणा समान, के माध्यम से ध्वनि सूर्य से प्रसारित होती पायीं गयीं हैं)...
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प्रकाशित पुस्तकें: गिनीपिग (वैज्ञानिक उपन्यास, वर्ष-1998), विज्ञान कथाएं (कहानी संग्रह, वर्ष-2000) बाल उपन्यास: सात सवाल (हातिम पर केन्द्रित बाल उपन्यास, वर्ष-1996), हम होंगे कामयाब/मिशन आजादी (बाल अधिकारों पर केन्द्रित बाल उपन्यास, वर्ष-2000/2003), समय के पार (पर्यावरण पर केन्द्रित वैज्ञानिक बाल उपन्यास 8 अन्य विज्ञान कथाओं के साथ प्रकाशित, वर्ष-2000) बाल कहानी संग्रह: मैं स्कूल जाऊंगी (मनोवैज्ञानिक बालकथा संग्रह, वर्ष-1996), सपनों का गांव (पर्यावरण परक बालकथा संग्रह, वर्ष-1999), चमत्कार (बाल विज्ञान कथा संग्रह, वर्ष-1999), हाजिर जवाब (बाल हास्य कथा संग्रह, वर्ष-2000), कुर्बानी का कर्ज (साहसिक कथा
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@ Samarpita & nisha आप लोगों को शायद हास्य आलेख का मतलब नहीं मालूम है, अगर मालूम होता तो शायद इतना गंभीर होकर नहीं पढ़ती, और इतना emotional होने की भी जरूरत नहीं थी! अब कोई हास्य कथा में गंभीरता ढूँढने लगे तो कहना ही क्या? और would वाला कहानी किसी का मजाक उड़ाने के लिए नहीं लिखा गया है, अगर आपको लगता है की ये मजाक उड़ाने के लिए है तो पूरी घटना काल्पनिक समझ लीजिये! टिप्पणियों के लिए धन्यवाद!!