लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने ' वेद में आर्यो का उत्तरी ध्रुव निवास' नामक अपनी पुस्तक में योरोपियन पांडित्य के सामान्य परिणामों को स्वीकार कर लिया है परन्तु वैदिक उषा की, वैदिक गौओ के अलंकार की और मन्त्रों के नक्षत्र-विद्या सम्बन्धी तत्वों की नवीन परीक्षा के द्वारा यह स्थापना की है कि कम से कम इस बात की बहुत अधिक सम्भावना तो है ही कि आर्य जातियां प्रारम्भ में हिम-युग में, उत्तरीय ध्रुव के प्रदेशों से उतरकर आयीं।