यह वह समय था जब दिग्विजय के लिए निकले रथ के उड़ते धूल से ढक गए थे राम दसो दिशाओं से रह-रह उठता विषम हूहू और बाज़ार के लिए सब कुछ हो गया था कारोबार
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आज याद आते है वो पल दिन भर हाहा हीही हूहू वो हसना हसाना, वो बातें बनाना उन सुनहरे पालो को हम सजोंते चले गये छोडो उस बात को यारों उसे चार वरस बीत गये...
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आप लफ्फाज नहीं है, दूसरों की हाहा हीही, हूहू करके मौज नहीं लेते इसलिये आपसे तो अपेक्षायें हैं, विदूषकों से तो कोई ये नहीं पूछता कि आप वहां गये थे तो चाय पोहे जलेबी खाने के अलावा क्या किया!
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आप लफ्फाज नहीं है, दूसरों की हाहा हीही, हूहू करके मौज नहीं लेते इसलिये आपसे तो अपेक्षायें हैं,विदूषकों से तो कोई ये नहीं पूछता कि आप वहां गये थे तो चाय पोहे जलेबी खाने के अलावा क्या किया! सीधी स्पष्ट बात.
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एक सुझाव, हालाँकि पहले भी एक ब्लॉग पर हाहा हूहू करते दिया था, “जो भी ब्लॉगिंग करना चाहे, पहले उसे कुछ पैरामीटर पर पूरा उतरने को कहा जाये जिनमें से सबसे अहम पैरामीटर कम से कम दो(संख्या घटाई बढ़ाई जा सकती है)
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एक सुझाव, हालाँकि पहले भी एक ब्लॉग पर हाहा हूहू करते दिया था, ” जो भी ब्लॉगिंग करना चाहे, पहले उसे कुछ पैरामीटर पर पूरा उतरने को कहा जाये जिनमें से सबसे अहम पैरामीटर कम से कम दो (संख्या घटाई बढ़ाई जा सकती है) विश्वसनीय, विद्वान ब्लॉगर्स से रिकमेंडेशन लाना जरूरी हो।
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मगर ओफीस में होने के बजह से टिप्पणी नही कर पाते! अभी जरुरत है तो एक होने की लेकिन दुर्भाग्य से हम बिखरे हुए है!कहा जाता है की आच्छे लोग होते बहोत है मगर बिखरे हुए इंको एकत्र करनेके लिए आप ही कोई हल निकलिए आप को भी पता होगा की आप जैसी सोच बहुतो की है बस वो आप लफ्फाज नहीं है, दूसरों की हाहा हीही, हूहू करके...