Oct. 14, 2012 update : Approximately 10,000 Muslims protested for four hours outside the London office of Google on Buckingham Palace Road, part of an attempt to make it make “The Innocence of Muslims” unavailable on YouTube (a subsidiary of Google) in Britain. They carried signs with “We love our prophet more than our lives,” “Freedom of speech = Hatred of Muslims?” and “Prophet Muhammad is the founder of freedom of speech.” Speeches were greeted with impassioned cries “Allahu Akbar” and “Mohammad rasul Allah.” A YouTube spokesperson brushed the demonstration aside: “This video - which is widely available on the Web - is clearly within our guidelines and so will stay on YouTube.” July 9, 2013 update : I listed Libya as one of the nearly countries where the “Innocence of Muslims” video prompted demonstrations, rioting, or violence and stand by that mention. Indeed, I have always found it plausible that the film had something to do with the attack on the U.S. mission in Benghazi. John Rosenthal confirms this connection today at “ New Evidence Links Benghazi Attack to Anti-Muslim Movie. ” Rosenthal's conclusion about Susan Rice's mistakes about Benghazi: “ ओबामा हम ओसामा को प्रेम करते हैं” :आस्ट्रेलिया में सिडनी में एक भीड ने यही नारा लगाया। जबकि अफगान, भारत और पाकिस्तान में इस्लामवादियों ने बराक ओबामा के पुतले जलाये। ओबामा के प्रति यह घृणा उल्लेखनीय है वह भी इस्लाम के साथ ओबामा के बाल्यकाल का सम्बंध , वर्ष2007 की यह भविष्यवाणी कि उनके राष्ट्रपतित्व से मुसलमानों के साथ सम्बंधों में सुधार होगा, राष्ट्रपति बनने के उपरांत मुस्लिम जनमानस को विजित करने के उनके अथक प्रयास और आरम्भिक दौर में मुसलमानों के उनके प्रति सहयोगी भाव को देखते हुए यह घटनाक्रम महत्वपूर्ण है। वास्तव में उनकी स्थिति में ऐसी गिरावट आयी है कि उनकी अलोकप्रियता का स्तर जार्ज डब्ल्यू बुश से भी अधिक हो गया है।
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British-based terrorists have carried out operations in Pakistan, Afghanistan, Kenya, Tanzania, Saudi Arabia, Iraq, Israel, Morocco, Russia, Spain, and America. Many governments - Jordanian, Egyptian, Moroccan, Spanish, French, and American - have protested London's refusal to shut down its Islamist terrorist infrastructure or extradite wanted operatives. In frustration, Egypt's president Hosni Mubarak publicly denounced Britain for “protecting killers.” One American security group has called for Britain to be listed as a terrorism-sponsoring state. इराक के युद्ध ने दुनिया के सामने ब्रिटिश सरकार को एक दृढ़ और सख्त सरकार के रुप में पेश किया तो वहीं फ्रांस को एक कमज़ोर और तुष्टीकरण करने वाली सरकार के रुप में. पश्चिम में फ्रांस की मान्यता एक सशक्त राष्ट्र के रुप में है जबकि ब्रिटेन को एक दुर्भाग्यशाली देश माना जाता है .ब्रिटेन आधारित आतंकवादियों ने पाकिस्तान , अफगानिस्तान , कीनिया , तंजानिया, सउदी अरब , इराक , इजरायल , मोरक्को, रुस , स्पेन और अमेरिका में अपनी गतिविधियां संपन्न कीं . जॉर्डन ,मिस्र , मोरक्को , स्पेन , फ्रांस और अमेरिका की सरकारों ने तो लंदन द्वारा इस्लामवादी आतंकवादियों की अवसंरचना को ध्वस्त करने से मना करने और वांछित अपराधियों के प्रत्यर्पण न करने पर ब्रिटेन की आलोचना की थी . कुंठित होकर मिस्र के राष्ट्रपति होसनी मुबारक ने सार्वजनिक रुप से ब्रिटेन पर आरोप लगा डाला कि वह हत्यारों को बचाने का प्रयास कर रहा है . अमेरिका के एक सुरक्षा वर्ग ने तो ब्रिटेन को आतंकवादियों को प्रश्रय देने वाले देश के रुप में सूचीबद्ध करने की मांगी कर डाली थी .
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Objections against Hindi being made the official language were based on three factors : -LRB- 1 -RRB- the advocates of Hindustani held that Sanskritised , literary Hindi was far removed from the spoken language , even in Hindi-speaking regions , and the number of those who understood it was comparatively small ; -LRB- 2 -RRB- those who did not speak Hindi , specially those who spoke the south Indian languages , protested that if Hindi took the place of English as the official language at an early date , they would not be able to compete with Hindi-speaking people for the Central and All-India Services ; -LRB- 3 -RRB- people with a Western education generally argued that neither Hindi nor any other regional language would , for a long time to come , be able to serve as the vehicle of official business specially to express precisely the higher concepts of law and jurisprudence . हिंदी को राजकीय भाषा बनाये जाने के संबध में उठायी गयी आपत्तियां मुख़्य तीन तथ्यों पर आधारित थी - ( 1 ) हिदुस्तानी की वकालत करने वालों का मत था कि संस्कृत निष्ठ साहित्यिक हिंदी , जहां हिंदी बोली जाती है ऐसे क्षेत्रो में भी बोली जाने वाली भाषा से बहुत भिन्न और उसको समझने वालों की संख़्या तुलनात्मक रूप में कम है . ( 2 ) हिंदी नहीं बोलने वाले , विशेषकर वे जो दक्षिण भारतीय भाषांए बोलते थे , उन्होंनें विरोध किया कि यदि हिंदी ने राजकीय भाषा के रूप में शीघ्र ही अंग्रेजी का स्थान ग्रहण किया तो वे केंद्रीय और अखिल भारतीय सेवाओं के लिए हिंदी बोलने वालों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकेगें . ( 3 ) पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त लोगों न सामान्य रूप से तर्क प्रस्तुत किए न तो हिंदी और न कोई अन्य क्षेत्रीय भाषा , आने वाले लंबे समय तक राजकीय कामकाज चलाने का कार्य संपन्न करने , विशेष रूप से कानून की ऊंची अवधारणाओं तथा न्यायशास्त्र को सूक्ष्मता से व्यक़्त करने में , समर्थ हो सकेगी .
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Objections against Hindi being made the official language were based on three factors : -LRB- 1 -RRB- the advocates of Hindustani held that Sanskritised , literary Hindi was far removed from the spoken language , even in Hindi-speaking regions , and the number of those who understood it was comparatively small ; -LRB- 2 -RRB- those who did not speak Hindi , specially those who spoke the south Indian languages , protested that if Hindi took the place of English as the official language at an early date , they would not be able to compete with Hindi-speaking people for the Central and All-India Services ; -LRB- 3 -RRB- people with a Western education generally argued that neither Hindi nor any other regional language would , for a long time to come , be able to serve as the vehicle of official business specially to express precisely the higher concepts of law and jurisprudence . हिंदी को राजकीय भाषा बनाये जाने के संबध में उठायी गयी आपत्तियां मुख़्य तीन तथ्यों पर आधारित थी - ( 1 ) हिदुस्तानी की वकालत करने वालों का मत था कि संस्कृत निष्ठ साहित्यिक हिंदी , जहां हिंदी बोली जाती है ऐसे क्षेत्रो में भी बोली जाने वाली भाषा से बहुत भिन्न और उसको समझने वालों की संख़्या तुलनात्मक रूप में कम है . ( 2 ) हिंदी नहीं बोलने वाले , विशेषकर वे जो दक्षिण भारतीय भाषांए बोलते थे , उन्होंनें विरोध किया कि यदि हिंदी ने राजकीय भाषा के रूप में शीघ्र ही अंग्रेजी का स्थान ग्रहण किया तो वे केंद्रीय और अखिल भारतीय सेवाओं के लिए हिंदी बोलने वालों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकेगें . ( 3 ) पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त लोगों न सामान्य रूप से तर्क प्रस्तुत किए न तो हिंदी और न कोई अन्य क्षेत्रीय भाषा , आने वाले लंबे समय तक राजकीय कामकाज चलाने का कार्य संपन्न करने , विशेष रूप से कानून की ऊंची अवधारणाओं तथा न्यायशास्त्र को सूक्ष्मता से व्यक़्त करने में , समर्थ हो सकेगी .
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UNRWA's staff has taken three major steps over the years to expand the definition of Palestine refugees. First, and contrary to universal practice, it continued the refugee status of those who became citizens of an Arab state (Jordan in particular). Second, it made a little-noticed decision in 1965 that extended the definition of “Palestine refugee” to the descendants of those refugees who are male, a shift that permits Palestine refugees uniquely to pass their refugee status on to subsequent generations. The U.S. government , the agency's largest donor, only mildly protested this momentous change. The UN General Assembly endorsed it in 1982, so that now the definition of a Palestine refugee officially includes “descendants of Palestine refugee males, including legally adopted children.” Third, UNRWA in 1967 added refugees from the Six-Day War to its rolls; today they constitute about a fifth of the Palestine refugee total. यूएनआरडब्ल्यूए के स्टाफ ने तीन महत्वपूर्ण कदम उठाकर विगत वर्षों में फिलीस्तीनी शरणार्थियों की परिभाषा को बढाने का कार्य किया है। पहला, वैश्विक परिपाटी के विपरीत इसने उन लोगों को शरणार्थी का दर्जा जारी रखा जिनमें से अनेक अरब के नागरिक भी बन गये( विशेष रूप से जार्डन)। दूसरा, इसने 1965 में ऐसा निर्णय लिया जिसकी अधिक चर्चा नहीं हुई कि “ फिलीस्तीनी शरणार्थियों” की परिभाषा बढाते हुए पुरुष शरणार्थियों की अगली पीढी को भी शरणार्थी का दर्जा दे दिया एक ऐसा परिवर्तन जिसके चलते फिलीस्तीनी शरणार्थी दर्जा अगली पीढी को चलता ही रहेगा। अमेरिकी सरकार जो कि इस एजेंसी को सबसे अधिक आर्थिक सहायता देती है उसने इस भारी परिवर्तन का आंशिक विरोध ही किया। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने इसे 1982 में स्वीकृति दे दी , इसके अनुसार “ अब फिलीस्तीनी शरणार्थियों की परिभाषा में आधिकारिक रूप से पुरुष फिलीस्तीनी शरणार्थियों की वंशज आते हैं जिसमें कि कानूनी रूप से गोद लिये बच्चे भी शामिल हैं” । तीसरा, यूएनआरडब्ल्यूए ने सूची देखकर छह दिन के युद्ध से शरणार्थियों की सूची बढा दी, आज की तिथि में वे कुल फिलीस्तीनी शरणार्थियों का 1\5 बनते हैं।
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In response to the phrase “some appeased mullah or sheik,” the executive director of CAIR's Canadian branch, Riad Saloojee , protested to the CIBC. We are gravely concerned that Mr. Rubin is promoting stereotyping of Muslims and Arabs in a CIBC publication. We request that Mr. Rubin and CIBC World Markets issue a letter of apology and undergo sensitization training regarding Muslims and Arabs. In a later formulation , Saloojee put his grievance more simply: “Many Muslims felt the comments were inappropriate.” वेंट ने अपने लेख में कनाडियन इम्पीरियल बैंक ऑफ कॉमर्स के वर्ल्ड मारकेटिंग विभाग के प्रमुख अर्थशास्त्री जेफरी रुबिन का मामला उठाया है . अप्रैल 2005 को अपने ग्राहकों से भविष्यवाणी करते हुए श्री रुबिन ने कहा कि तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी जारी रहेगी . उन्होंने कहा कि 1970 में तेल की कीमतों में अचानक दो बार आई उछाल तब हुई थी जब कुछ राजनीतिक घटनाओं ने तेल उत्पादकों को इस बात के लिए विवश किया था कि वे अपने उत्पाद पर पूरी संप्रभुता रखें और कुछ समय के लिए आपूर्ति रोक दें . इस समय भी परिस्थिति में ऐसा कोई अंतर नहीं आया है कि संतुष्ट मुल्ला और शेख अचानक पीठ दिखा दें . “संतुष्ट मुल्ला और शेख ” शब्द के प्रयोग पर सीएआईआर के कनाडियन शाखा के कार्यकारी निदेशक रियाद सलूजी ने कनाडियन बैंक ऑफ कॉमर्स से शिकायत की . उन्होंने कहा कि हमें इस बात की बहुत चिंता है कि श्री रुबिन अरब के मुसलमानों के विशेषण को बहुत हलका कर रहें हैं. हम चाहते हैं कि श्री रुबिन और कनाडियन बैंक माफी मांगे , मुसलमानों और अरब के संबंध में अधिक संवेदनशील बनें.बाद में सलूजी ने इसे और भी संक्षिप्त करते हुए कहा कि बहुत से मुसलमानों की दृष्टि में यह कथन अनुचित है. वैसे सलूजी का यह तर्क बेवकूफी भरा है जबकि सब जानते हैं कि इरान के मुल्ला और अरब के शेख तेल की कीमतों का भाव निर्धारित करते हैं लेकिन इससे कनाडियन बैंक को कुछ भी लेना देना नहीं है . उन्होंने सलूजी की मांग मानते हुए सार्वजनिक रुप से माफी मांग ली और जिस रुबिन के बारे में उन्होंने कहा था कि वह कनाडा के प्रमुख अर्थशास्त्रियों में हैं उन्हें संस्कृति की विविधता समझने के लिए प्रशिक्षण पर भेज दिया गया .इस प्रशिक्षण के संबंध में वेंट ने अपने लेख में कुछ रोचक जानकारियां दी हैं जो कि ओटावा स्थित विविधता के विशेषज्ञ ग्रे ब्रिज माल्कम के कार्यकारी अध्यक्ष लारायन कामिस्की द्वारा दिया गया . कामिस्की ने रुबिन के लिए विशेष तौर पर पाठ्यक्रम तैयार किया और कनाडियन बैंक ने रुबिन के दो घंटे के प्रशिक्षण के लिए हजारों डॉलर दिए .
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In response to the phrase “some appeased mullah or sheik,” the executive director of CAIR's Canadian branch, Riad Saloojee , protested to the CIBC. We are gravely concerned that Mr. Rubin is promoting stereotyping of Muslims and Arabs in a CIBC publication. We request that Mr. Rubin and CIBC World Markets issue a letter of apology and undergo sensitization training regarding Muslims and Arabs. In a later formulation , Saloojee put his grievance more simply: “Many Muslims felt the comments were inappropriate.” वेंट ने अपने लेख में कनाडियन इम्पीरियल बैंक ऑफ कॉमर्स के वर्ल्ड मारकेटिंग विभाग के प्रमुख अर्थशास्त्री जेफरी रुबिन का मामला उठाया है . अप्रैल 2005 को अपने ग्राहकों से भविष्यवाणी करते हुए श्री रुबिन ने कहा कि तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी जारी रहेगी . उन्होंने कहा कि 1970 में तेल की कीमतों में अचानक दो बार आई उछाल तब हुई थी जब कुछ राजनीतिक घटनाओं ने तेल उत्पादकों को इस बात के लिए विवश किया था कि वे अपने उत्पाद पर पूरी संप्रभुता रखें और कुछ समय के लिए आपूर्ति रोक दें . इस समय भी परिस्थिति में ऐसा कोई अंतर नहीं आया है कि संतुष्ट मुल्ला और शेख अचानक पीठ दिखा दें . “संतुष्ट मुल्ला और शेख ” शब्द के प्रयोग पर सीएआईआर के कनाडियन शाखा के कार्यकारी निदेशक रियाद सलूजी ने कनाडियन बैंक ऑफ कॉमर्स से शिकायत की . उन्होंने कहा कि हमें इस बात की बहुत चिंता है कि श्री रुबिन अरब के मुसलमानों के विशेषण को बहुत हलका कर रहें हैं. हम चाहते हैं कि श्री रुबिन और कनाडियन बैंक माफी मांगे , मुसलमानों और अरब के संबंध में अधिक संवेदनशील बनें.बाद में सलूजी ने इसे और भी संक्षिप्त करते हुए कहा कि बहुत से मुसलमानों की दृष्टि में यह कथन अनुचित है. वैसे सलूजी का यह तर्क बेवकूफी भरा है जबकि सब जानते हैं कि इरान के मुल्ला और अरब के शेख तेल की कीमतों का भाव निर्धारित करते हैं लेकिन इससे कनाडियन बैंक को कुछ भी लेना देना नहीं है . उन्होंने सलूजी की मांग मानते हुए सार्वजनिक रुप से माफी मांग ली और जिस रुबिन के बारे में उन्होंने कहा था कि वह कनाडा के प्रमुख अर्थशास्त्रियों में हैं उन्हें संस्कृति की विविधता समझने के लिए प्रशिक्षण पर भेज दिया गया .इस प्रशिक्षण के संबंध में वेंट ने अपने लेख में कुछ रोचक जानकारियां दी हैं जो कि ओटावा स्थित विविधता के विशेषज्ञ ग्रे ब्रिज माल्कम के कार्यकारी अध्यक्ष लारायन कामिस्की द्वारा दिया गया . कामिस्की ने रुबिन के लिए विशेष तौर पर पाठ्यक्रम तैयार किया और कनाडियन बैंक ने रुबिन के दो घंटे के प्रशिक्षण के लिए हजारों डॉलर दिए .