मैंने उनसे पूछा, ‘ फिर क्यों पढ़े-लिखे लोग हिंदुस्तानी फ़िल्म संगीत को घटिया समझते हैं? ' उनका जवाब था, ‘ हर पढ़ा-लिखा आदमी अक़्लमंद नहीं होता।
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यानी अक़्लमंद इंसान वह है जो अपने आधे वुजूद से लोगों की बुराीयों व मुशकिलों को बर्दाश्त करे और दूसरे आधे वुजूद से अतराफ़ में होने वाले कामों को नज़र अंदाज़ कर दे।
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अक़्लमंद शौहर व बीवी को यह कोशिश करनी चाहिये कि अपनी मुशतरक ज़िन्दगी में एक दूसरे की कमियों और ख़ामियों को नज़र अंदाज़ करते हुए आपस में इज़्ज़त व एहतेराम को बानाये रखें।
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72 अक़्लमंद इंसान जिन तीन चीज़ों की तरफ़ तवज्जोह देते हैं, वह यह हैं ज़िंदगी का सुख, आखेरत का तोशा (सफ़र में काम आने वाले सामान) और हलाल ऐश।
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ऐसी सूरत में वह वालदैन अक़्लमंद समझे जाते हैं जो अपनी औलाद के मुस्तक़बिल की ख़ातिर इन ख़ामियों को मामूली व छोटा समझते हुए उन्हे नज़र अंदाज़ कर देते हैं और उनकी हिम्मत बढ़ाते हुए उनके अंदर जुरअत और कुछ करने के हौसले को ज़िन्दा रखते हैं।
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नबियों की इस्मत को साबित करने का एक रास्ता यह है कि हम ख़ुद को देखें, जब हम अपने अंदर ग़ौर व फ़िक्र करेंगे तो देखेंगे कि हम भी बाज़ गुनाहों या गंदे और बुरे कामों में मासूम हैं जैसे क्या कोई अक़्लमंद इंसान बैतुल ख़ला की गंदगी या कूढ़ा करकट खा सकता है?
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इसलिए मालूम यह हुआ कि आज़ादी का एरिया इतना विस्तृत नहीं है जैसा कि कुछ लोग कल्पना करते हैं और ऐसी यानि असीमित आज़ादी को कोई अक़्लमंद इंसान क़बूल नहीं कर सकता है इसलिए आज़ादी के इस तरह मतलब बयान करने चाहिए, जो दूसरों के अपमान और अधिकारों के पद दलित होने का कारण न बने।
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कुछ लोग चूँकि बहुत छोटे दिल के होते हैं और अहसान का नतीजे दूसरे को नीचा दिखाना और ख़ुद को अक़्लमंद ख़्याल करते हैं इसलिये आप इसके आगे इरशाद फ़रमाते हैं इन सारे मौक़ों की नज़ाकतों को पहचानो और बहुत अहतियात से काम लो कि जो कुछ कहा गया है उसको केवल उसके सही समय पर अँजाम दो।