मसलन यह कहना कि साहित्यिक भाषा बेहद कठिन होती है या फिर अखबारी भाषा न्यूज चैनल में फिट बैठ नहीं सकती, इससे इतर न्यूज चैनलों में भाषा को लेकर यह समझना ज्यादा जरुरी है कि शब्दों के साथ स्क्रीन पर जब तस्वीरें भी चल रही है तो फिर भाषा का मतलब तस्वीरो की कहानी कहना भर नहीं है।
32.
कुछ समीक्षकों ने इसे ‘ अखबारी भाषा ' कहकर इसका महत्व कम समझने की भूल की है, उन्हें परसाई की भाषा का असाहित्यिक कहने से पहले अपने-आप से सवाल करना चाहिए कि बीसवीं शताब्दी में हिन्दी साहित्य में प्रेमचन्द के बाद किसकी रचनाओं को सर्वाधिक लोगों ने पढ़ा और आनन्द उठाया है, तो उनको जबाव खुद ब खुद मिल जाएगा।