के सामने से प्रारंभ होकर अग्रबाहु के भीतरी किनारे पर सीधी नीचे हथेली तक चली जाती है और वहाँ अँगूठे की ओर को मुड़कर, बहि:प्रकोष्ठिका की शाखा के साथ मिलकर उत्तल करतल चाप (
32.
अग्रबाहु की पीठ की तीन पेशियों को छोड़कर सब प्रसारक पेशियाँ हैं, जो बहिरस्थिकंद के सामान्य कंडा द्वारा, अस्थिकद के ऊपर की तोरणिका तथा वहाँ की कला से निकलती हैं ओर आकुचक पेशियों की भाँति पतली कंडराओं में अंत:
33.
अग्रबाहु की पीठ की तीन पेशियों को छोड़कर सब प्रसारक पेशियाँ हैं, जो बहिरस्थिकंद के सामान्य कंडा द्वारा, अस्थिकद के ऊपर की तोरणिका तथा वहाँ की कला से निकलती हैं ओर आकुचक पेशियों की भाँति पतली कंडराओं में अंत:
34.
अवतानन (Pronation)-यह अग्रबाहु की घुमावदार गति होती है जिसमें रेडियस अल्ना के ऊपर तिरछी हो जाती है या हथेली को नीचे या पीछे की ओर घुमाना या चेहरे को नीचे की तरफ करके लेटने की क्रिया।
35.
अग्रबाहु के बाहरी किनारे पर सीधी नीचे मणिबंध पर पहुँचकर, पीछे की ओर को घूमकर, पहली और दूसरी करतल शाखाओं के बीच से पीछे की ओर से करतल में आकर, अंत:प्रकाष्ठिका की एक शाखा से मिलकर, नितल करतल चाप (
36.
उत्तानन (Supination)-यह अग्रबाहु की घुमावदार गति होती है जिसमें रेडियस घूमकर अल्ना के समान्तर हो जाती है या हथेली को ऊपर की ओर घुमाना अथवा पैर के मध्यवर्ती किनारे को ऊपर उठाना या कमर के सहारे सीधा लेटना।
37.
के ऊपर के पिंडक से निकलकर, सारी बाहु के सामने होती हुई नीचे जाकर, कंडरा में अंत हो जाती हैं, जो कुहनी के सामने से निकलकर, अग्रबाहु के ऊर्ध्व भाग मे बहिष्प्रकोष्ठास्थि के शिर से नीचे स्थित गुलिका के खुरदरे भाग पर लग जाती है।
38.
द्विशिरस्का दो शिरों द्वारा अंसकूट और स्कंध संधि के भीतर अंस-उलूखल (glenoid cavity) के ऊपर के पिंडक से निकलकर, सारी बाहु के सामने होती हुई नीचे जाकर, कंडरा में अंत हो जाती हैं, जो कुहनी के सामने से निकलकर, अग्रबाहु के ऊर्ध्व भाग मे बहिष्प्रकोष्ठास्थि के शिर से नीचे स्थित गुलिका के खुरदरे भाग पर लग जाती है।
39.
अग्रबाहु के बाहरी किनारे पर सीधी नीचे मणिबंध पर पहुँचकर, पीछे की ओर को घूमकर, पहली और दूसरी करतल शाखाओं के बीच से पीछे की ओर से करतल में आकर, अंत:प्रकाष्ठिका की एक शाखा से मिलकर, नितल करतल चाप (deep palmar arch) बना देती हैं, जिससे अँगूठे के दोनों ओर और तर्जनी के बहि:पृष्ठ को शाखाएँ जाती हैं।
40.
यह कुहनी कूर्पर (elbow) के सामने से प्रारंभ होकर अग्रबाहु के भीतरी किनारे पर सीधी नीचे हथेली तक चली जाती है और वहाँ अँगूठे की ओर को मुड़कर, बहि:प्रकोष्ठिका की शाखा के साथ मिलकर उत्तल करतल चाप (superficial palmar arch) बना देती हैं, जिसमें कनिष्ठा, मध्यमा और अनामिका अंगुलियों के दोनों ओर, तर्जनी के केवल भीतरी किनारे पर, शाखाएँ चली जाती हैं।