दरअसल यह स्राव योनि को स्वच्छ तथा स्निग्ध रखने की प्राकृतिक प्रक्रिया है वहीं अण्डोत्सर्ग के दौरान यह स्राव इसलिये बढ़ जाता है ताकि अण्डाणु आसानी से तैर सके.
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दरअसल यह स्राव योनि को स्वच्छ तथा स्निग्ध रखने की प्राकृतिक प्रक्रिया है वहीं अण्डोत्सर्ग के दौरान यह स्राव इसलिये बढ़ जाता है ताकि अण्डाणु आसानी से तैर सके.
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दरअसल यह स्राव योनि को स्वच्छ तथा स्निग्ध रखने की प्राकृतिक प्रक्रिया है वहीं अण्डोत्सर्ग के दौरान यह स्राव इसलिये बढ़ जाता है ताकि अण्डाणु आसानी से तैर सके.
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अण्डोत्सर्ग के आसपास के समय में सम्भावना सब से अधिक रहती है अर्थात माहवारी चक्र के 14 वें दिन (रक्तस्राव रूकने के 7 से 10 वें दिन) ।
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दरअसल यह स्राव योनि को स्वच्छ तथा स्निग्ध रखने की प्राकृतिक प्रक्रिया है वहीं अण्डोत्सर्ग के दौरान यह स्राव इसलिये बढ़ जाता है ताकि अण्डाणु आसानी से तैर सके.
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अण्डकोष बढ़ जाते हैं और उसमें अण्डे के अणु उगने शुरू हो जाते हैं और हर महीने होने वाली ‘ अण्डोत्सर्ग ' की विशेष घटना की तैयारी में विकसित होने लगते हैं।
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सामान्य योनिक स्राव की मात्रा में निम्नलिखित स्थितियों में वृद्ध हो सकती है-योनपरक उत्तेजना, भावात्मक दबाव और अण्डोत्सर्ग (माहवारी के मध्य में जब अण्डकोष से अण्डे का सर्जन और विसर्जन होता है)
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और यह होरमोन अण्डोत्सर्ग (ओवुलय्शन) के दौरान शरीर का तापमान भी बाधा देते हैं और माहवारी के दौरान किसी दिन ज्यादा खून बहने और कभी कम खून बहने का कारण भी होते हैं।
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सामान्य योनिक स्राव की मात्रा में निम्नलिखित स्थितियों में वृद्ध हो सकती है-योनपरक उत्तेजना, भावात्मक दबाव और अण्डोत्सर्ग (माहवारी के मध्य में जब अण्डकोष से अण्डे का सर्जन और विसर्जन होता है)
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जिन लड़कियों में मिनार्चे के पश्चात् कई सालों तक मासिक धर्म के चक्र में अत्याधिक अनुपात में अनियमितता और अण्डोत्सर्ग की समस्याएं बनी रहती हैं, उनमें प्रजनन क्षमता घटने का खतरा अधिक हो जाता है.