आध्यात्मवादी दृष्टिकोण, बहुदेव वाद, समन्वय वाद, सेवा भाव, सम्मान का भाव, पवित्रता, अनेकता में एकता, विश्वास सहनशीलता, नारी सम्मान, ईश्वर पर विश्वास, अतिथि सेवा, शरणागत की रक्षा, व्रत व नियम पालन, अहिंसावादी दृष्टिकोण आदि समस्त भावनाएँ लोक गाथाओं में उभर कर सामने आती हैं।
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अतिथि सेवा को सर्वोपरि महत्त्व देते हुए उन्होंने बताया गृहस्थ पुरुष कभी भी अतिथि का अनादर न करे! अतिथि घर पर आये तो उसका यथाशक्ति आदर करे! भोजन के समय यदि चंडाल भी आ जाये तो गृहस्थ को अन्न द्वारा उसका सत्कार करना चाहिए! जो व्यक्ति किसी भिक्षु या अतिथि के भय से अपने घर का दरवाजा बंद कर भोजन करता है वह अपने लिए स्वर्ग के दरवाजे बंद कर देता है!