“ वास्तु ” विषय जो कि अति प्राचीनकाल से भारत वर्ष में मान्यता रखता है आज जन-सामान्य के लिये विशेष रुचि का विषय हो गया है।
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यही कारण है कि अति प्राचीनकाल से पुष्पों को शरीर के विभिन्न भागों पर गजरे एवं आभूषणों के रूप में धारण करने की परंपरा रही है।
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इस अवनितल पर विशेषकर इस भारतभूमि का तो सौभाग्य ही रहा है कि यहाँ अति प्राचीनकाल से लेकर आज तक ऐसी दिव्य विभूतियों का अवतरण होता ही रहा है।
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अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व यूं तो अति प्राचीनकाल से मनाया जाता रहा है, लेकिन आज जो विधान मौजूद है वह भगवान श्रीकृष्ण के इस धरा पर अवतरित होने के बाद द्वापर युग से आरंभ हुआ है।
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भारतीय तत्वेत्ता अति प्राचीनकाल से ही इस निष्कर्ष पर पहुँच गये थे कि मनुष्य की अंतःस्थिति जब तक उत्कृष्ट चिन्तन के साथ लिपटी हुई न रहेगी तब तक उसका विकास उस दिशा में न हो सकेगा जिससे व्यक्ति और समाज की सुख-शान्ति जुड़ी हुई है ।।