इसीलिए, जैसाकि कहा गया है कि, समाज में वर्चस्वशाली वर्ग के चरित्रा के मुताबिक ही अधिभूत संरचनाओं का स्वरूप तय होता है।
32.
इसीलिए अध्यात्म, अधिभूत आदि विभिन्न रूपों में आत्मा या परमात्मा का जानना जरूरी हो जाता है और इसीलिए उसका उल्लेख आया है।
33.
भावार्थ: उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय पुरुष (जिसको शास्त्रों में सूत्रात्मा, हिरण्यगर्भ, प्रजापति, ब्रह्मा इत्यादि नामों से कहा गया है)
34.
इसीलिए, जैसाकि कहा गया है कि, समाज में वर्चस्वशाली वर्ग के चरित्रा के मुताबिक ही अधिभूत संरचनाओं का स्वरूप तय होता है।
35.
हे श्री कृष्ण, आप किसे अधिभूत कहते हैं, और अधिदैव का उच्चारण अर्थात आप के इस शब्द का अर्थ क्या है.
36.
' अधिभूतं क्षरोभाव: ' का अर्थ है कि पदार्थों का जो क्षर स्वरूप है, या यों कहिए कि उनकी विनाशिता है वही अधिभूत है।
37.
भूतों के अंवेषण होने पर जिन पदार्थों को अधिभूत कहा गया उनके संबंध के विवेक, विचार और मंथन आदि को ही आधिभौतिक नाम दिया गया।
38.
गीता में अर्जुन के सोलह प्रश्न हैं जिनमें वे पूछते हैं-ब्रह्म क्या है? अधिभूत क्या है? कर्म क्या है? स्वभाव क्या है?
39.
क्षर तथा अक्षर तत्त्व का निरूपण करते हुए कहा गया है क्षररूप प्रकृति अधिभूत है तथा पुरुष अधिदैवत है और समस्त देह में परमात्मा अधियज्ञ है * ।
40.
अब हमें जरा सातवें अध्याय के अंत और आठवें के शुरू में कहे गए गीता के अध्यात्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ का भी विचार कर लेना चाहिए।