इवान इलिच का अपने जीवन के अधूरेपन से साक्षात्कार, अपनी असफलता की गहरी पीड़ा, बचपन की मासूम स्मृतियों में उसका लौटना-बरबस ही तोल्स्तोय के लेखन की गहरी मानवीयता के प्रति श्रद्धा जगाता है।
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ठंडी दीवारों में जज्ब हो चुके हैं बीते सारे दिन रातों के गलियारों में गहराता बैंजनी अंधेरा तुम छूट जाती हो अधूरी अपनी देह में मैं उठता हूं बार-बार नीमबेहोशी में ढांपने तुम्हें अपने इतने अधूरेपन से
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वह एक पुल था-हज़ारों सदियों के कुहरे को काटता हुआ, अतीत के उस सीमान्त को छूता हुआ-जहाँ मौन, शब्दों के अभाव से नहीं, उनके अधूरेपन से उत्पन्न होता है-ऐसा पुल जो जितना-कुछ जोड़ता है, उतने में ही टूट जाता है ।
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अधूरा वो झाड़ू वाला नहीं, | अधूरे हैं वो लोग जो खुद कभी अपने छोटेपन से अधूरेपन से ओछेपन बहार नहीं निकल सके | जो बड़े-बड़े मकानों और बड़ी गाड़ियों में बैठ कर खुद को पूर्ण समझ लेते है!
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? क्या व्यक्ति अन्दर से इतना बेईमान हो चुका है कि अपने हाथ के काम आधे अधूरेपन से निबटाने, पहुँच के बाहर की चीज़ों के बारे में सपनियाने और अपनी निरर्थकता के लिए समाज को गरियाने के अलावा और कुछ नहीं करता..
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वह एक पुल था-हज़ारों सदियों के कुहरे को काटता हुआ, अतीत के उस सीमान्त को छूता हुआ-जहाँ मौन, शब्दों के अभाव से नहीं, उनके अधूरेपन से उत्पन्न होता है-ऐसा पुल जो जितना कुछ जोड़ता है, उतने में ही टूट जाता है।
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अपने ऊपर थोप लिए गए अधूरेपन से यदि मुक्ति पा सकें, पूरेपन के मनमाने टुकड़े करने की आदत से यदि पिंड छुड़ा सकें, तो हम अपने “ घट-भीतर ” के इस अहसास के प्रति, अपने ‘ स्पेसि-एसेंस ' के प्रति फिर से सचेत हो सकते हैं:
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मुनियों-देवताओं को भी मति भ्रम हो जाता है तो ‘का कथ मनुष्याणाम् ' तो साधारण मनुष्य का क्या कहना! मगर कि हम अधूरेपन से बराबर पूरेपन की ओर अग्रसर होते रहें-उसी में हमारे, आपके, सबके जीवन की सार्थकता है और सर्जना-समीक्षण से जुड़े हम सबों का तो एक विशेष दायित्व ही बनता है इस मानी में।
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' संभवतः इसी का तर्जुमा है....काफ्का-मीलेना के अंतर्संबंधों का सच,या हर्मान के अपने अतीत और वर्त्तमान के अंतर्द्वंद या इवान इलिच का अपने जीवन के अधूरेपन से साक्षात्कार,असफलता की गहरी पीड़ा,(तोलस्तोय),या ब्रॉडस्की ने निष्कासन के दिनों के बारे में लिखते हुए अपने बूढ़े माँ-बाप को उन दो कव्वों को देख याद करना ।
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काफ्का-मीलेना के अंतर्संबंधों का सच, या हर्मान के अपने अतीत और वर्त्तमान के अंतर्द्वंद या इवान इलिच का अपने जीवन के अधूरेपन से साक्षात्कार, असफलता की गहरी पीड़ा, (तोलस्तोय), या ब्रॉडस्की ने निष्कासन के दिनों के बारे में लिखते हुए अपने बूढ़े माँ-बाप को उन दो कव्वों को देख याद करना ।