भारतीय संस्कृति की अन्यान्य विशेषताओं सुख का केन्द्र आंतरिक श्रेष्ठता, अपने साथ कड़ाई, औरों के प्रति उदारता, विश्वहित के लिए स्वार्थो का त्याग, अनीतिपूर्ण नहीं-नीतियुक्त कमाई पारस्परिक सहिष्णुता, स्वच्छता-शुचिता का दैनन्दिन जीवन में पालन, परिवार-व राष्ट के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी का परिपालन, अनीति से लड़ने संघर्ष करने का साहस-मन्यु, पितरों की तृप्ति हेतु तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु स्थान-स्थान पर वृक्षारोपण कर हरीतिमा विस्तार तथा अवतारवाद का हेतु समझते हुए तदनुसार अपनी भूमिका निर्धारण सभी पक्षों का बड़ा ही तथ्य सम्मत-तर्क विवेचन पूज्यवर ने इसमें प्रस्तुत किया है ।