उर्ध्वलोक में 16 स्वर्ग, 9 ग्रैवेयक, 9 अनुदिश तथा 5 अनुत्तर जिनमें सर्वार्थसिद्धि के उपर सिद्धशिला अवस्थित है, जहाँ पर कर्म मुक्त आत्मा शाश्वत आनन्द मे निमग्न रहते हैं।
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ये संस्कार जब सर्वथा क्षीण हो जाते हैं तब ही व्यक्ति अहिंसा के अनुत्तर पथ में पदन्यास करता है और स्वयं उससे संरक्षित होता हुआ अहिंसा का संरक्षक बन जाता है.
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आज जैसे आपकी लेखनी सीधे दिल पर दस्तक करते हुए कई सवालों को अनुत्तर छोड़ के चली गयी! सच और गहरा है ये तो!! “आसमानी रिश्ते भी टूट जाते हैं..
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चर्च या मस्जिद न आने देनेवाले सब जगह रेसिडेंट्स असोसियेशन के ही लोग हैं, तो क्या बिशप प्रकाश उन सब को हिन्दु कट्टरपंथी मानते हैं?-यह प्रश्न अनुत्तर रह जाता है.
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उन्होंने संबोधि के तीसरे अध्याय में उल्लेखित सुख और दुःख को स्पष्ट करते हुए कहा कि भौतिक सुखों का नाश होने पर आत्मानुभूति की प्राप्ति होती है और मनुष्य स्वयं अनुत्तर स्थान को प्राप्त हो जाता है।
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9. अनुत्तरोपपातिक दशा-इसमें ऐसे मुनियों के चरित्र वर्णित हैं जिन्हें अपनी तपस्या के बीच घोर उपसर्ग सहन करने पड़े और उन्होंने मरकर उन अनुत्तर नामक स्वर्गो में जन्म लिया जहाँ से केवल एक बार पुन:
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उत्तराभिमुख हो बोधिसत्त्व ने कहा कि मैं सभी प्राणियों में अनुत्तर हूँ नीचे की ओर सात पग रखकर कहा कि मार को सेना सहित नष्ट करुँगा और नारकीय सत्त्वों पर महाधर्ममेघ की वृष्टि कर निरयाग्नि को शान्त करूँगा।
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पद्म पुराण के अनुसार महर्षि अत्रि ने अनुत्तर नामक कठिन तप किया और इसी कठोर तप को करते हुए एक दिन ऋर्षि अत्रि के नेत्रों से जल की कुछ बूंदे गिर पड़ी जिन्हें दिशाओं ने स्त्री रूप में पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु ग्रहण कर लिया.
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पद्म पुराण के अनुसार महर्षि अत्रि ने अनुत्तर नामक कठिन तप किया और इसी कठोर तप को करते हुए एक दिन ऋर्षि अत्रि के नेत्रों से जल की कुछ बूंदे गिर पड़ी जिन्हें दिशाओं ने स्त्री रूप में पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु ग्रहण कर लिया.
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जबसे मुझे इन चारों आर्य सत्यों का यथार्थ सुविशुद्ध ज्ञानदर्शन हुआ मैंने देवलोक में, पमारलोक में, श्रवण जगत और ब्राह्मणीय प्रजा में, देवों और मनुष्यों में यह प्रकट किया कि मुझे अनुत्तर सम्यक् सम्बोधि प्राप्त हुई और मैं अभिसंबुद्ध हुआ, मेरा चित्त निर्विकार और विमुक्त हो गया और अब मेरा अंतिम जन्म है।