इंग्लैड के अनुभववादी-जान लॉक (1632-1704) ने अपनी विख्यात पुस्तक “मानव बुद्धि पर निबंध” को सहज, अप्राप्त प्रत्ययों की अस्वीकृति से आरंभ किया।
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मगर हमारा यह 99 फीसदी तथाकथित मार्क्सवादी काडर अनुभववादी होने के कारण क्लासिकीय मार्क्सवादी पुस्तकों को ‘आस पडौस ' पर रोब झाड़ने के लिए रखता है.
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लॉक, बर्कले, ह्युम प्रसिद्ध अनुभववादी थे. कुछ अन्य व्यक्ति बुद्धिको महत्वपूर्ण मानते हैं और कहते हैं कि बिना बुद्धि के प्रयोग के सत्यज्ञान सम्भव नहीं है.
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लेकिन कलावादी हों या अनुभववादी, आधुनिकतावादी हों या उत्तर-आधुनिकतावादी समीक्षक, वे कहानी की इस विशेषता को उसकी सबसे बड़ी कमी और खामी मानते हैं।
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इसके लिये यह आवश्यक है कि सभी तरह के संकीर्णवादी, कठमुल्लावादी और सोच के अनुभववादी रूझानों के खिलापफ सैद्धांतिक संघर्ष को और बढ़ाया जाए ।
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शायद उन्हें लगता है कि अनुभववादी ढंग से कहानी लिखने का आसान, सुविधाजनक और सुरक्षित रास्ता छोड़ यथार्थवादी लेखन करना पड़ा, तो वे मुश्किल में पड़ जायेंगे।
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अपनी तत्वमीमांसा में भी ह्यूम एक अत्यन्त ही साहसी और संगत अनुभववादी की भूमिका अदा करता है, जो अनुभूत है, उसकी वास्तविकता वह नहीं मानता।
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सच तो यह है कि मार्क्सवादी ज्ञानमीमांसा के समर्थक विद्वानों ने अभी तक खुद को सामान्य स्तर का अनुभववादी और अनुभवहीन यथार्थवादी ही सिद्ध किया है.
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शायद उन्हें लगता है कि अनुभववादी ढंग से कहानी लिखने का आसान, सुविधाजनक और सुरक्षित रास्ता छोड़ यथार्थवादी लेखन करना पड़ा, तो वे मुश्किल में पड़ जायेंगे।
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इससे नुकसान मेरा ही नहीं, साहित्य के मूल्यांकन की स्वस्थ परंपरा का भी हुआ।'' ‘विमर्शों' पर आधारित अनुभववादी कथा-समीक्षा से अब्दुल बिस्मिल्लाह ने भी अपना असंतोष व्यक्त किया है।