इन ग्रथों के परिदर्शन से ज्ञात होता है कि जैसा ऊपर कहा जा चुका है, 'अमरकेश' के तथा कभी कभी अन्य कोशों के आधार पर हिंदी के मध्यकालीन पद्यात्मक कोश बने जो पर्जायवाची, समानार्थी या अनेकार्थक कोश थे ।
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होशयार शब् द जैसा कि सभी जानते हैं अनेकार्थक है-बुद्धिमान, अक् लमंद, चतुर, सचेत, दक्ष, कुशल, जागरूक और माहिर जैसे धनात् मक अर्थ लिये हुए, वहीं इसके ऋणात् मक अर्थ भी हैं चालाक, छली, ठग।
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कपूर साहब ने बार-बार दखल दिया| राजेश उत्साही की टिप्पणी के बाद होशियार शब्द पर चर्चा करते हुए कहा, यह अनेकार्थक है-बुद्धिमान, अक्लमंद, चतुर, सचेत, दक्ष, कुशल, जागरूक और माहिर जैसे अर्थ लिये हुए और चालाक, छली, ठग का अर्थ देते हुए भी ।
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(५) 'अमरसिंह' के कोशग्रंथ में 'नामतंत्र' और 'लिंगतंत्र' दोनों का समन्वय होने के बाद जहाँ एक और कांश उभयनिर्देशक होने लगे वहाँ कुछ कंश 'अमरकोश' के अनुकरण पर ऐसे भी बने जिनमें समानार्थक पर्योयों और अनेकार्थक शब्दों-दोनों विधाओं की अवतारण एकत्र की गई ।
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अर्जुन उवाच-हे जनार्दन, हे,केशव!जब आप घर बर्बाद करवाने और दिवालिया हो जाने के साधनों में अन्य कई प्रकार के साधनों को भी श्रेष्ठ मानते है,तो फिर मुझे शेयर बाजार में पैसा लगाने के घोर कर्म में क्यों लगाना चाहते है.आपके अनेकार्थक मिले जुले उपदेशों से मेरी...
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ये सभी शब् द नवल किशोर जी द्वारा सम् पादित नालन् दा वृहत् शब् दकोष से लिये गये हैं, हॉं यह अवश् य है कि ये शब् द अनेकार्थक हैं और ग़ज़ल में जो अर्थ उपयुक् त बैठता है वहीं लिया और दर्शाया गया है।