ये भाषाई अनेकार्थता के मामले नहीं हैं लेकिन इसके साथ भ्रमित किया हो सकते हैं क्योंकि वक्ताओं को अक्सर अनेकार्थी कहा जाता है।
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इन अनेकार्थता को सरंचनात्मक कहा जाता है क्योंकि ऐसे प्रत्येक वाक्यांश को दो संरचनात्मक दृष्टि से भिन्न तरीकों में प्रतिनिधित्व किया जा सकता है।
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यद्यपि अनेकार्थता मौलिक रूप से भाषाई अभिव्यक्ति की एक संपत्ति है, लोग अवसर पर अनेकार्थी होने के लिए कैसे भाषा का प्रयोग करते हैं।
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शब्दार्थगत अनेकार्थता एक ऐसा तरीका है, लेकिन वहाँ और भी हैं: भिन्नार्थता (ऊपर वर्णित है), अस्पष्टता, सापेक्षता, क्रमबद्धता, शाब्दिक शुद्धता, और अविवेक हैं।
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फिर भी, इतना तय है कि ' अनेकार्थता ' पाठक के लिए-और आलोचक-पाठक के लिए अक्सर एक असुविधाजनक नैतिक-राजनीतिक स्थिति रही है.
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अनेकार्थता के प्रकार यद्यपि लोगों को कभी कभी अनेकार्थी कहा जा सकता है कि कैसे वे भाषा का प्रयोग करते हैं, अनेकार्थता, सच पूछिये तो, भाषाई अभिव्यक्ति की संपत्ति है।
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हारिल उपन्यास में नैतिक मूल्यों के ह्नास की बात जिस सादगी से उठायी गयी है, वह इस रचना की उपलब्धि है क्योंकि वह उसकी अर्थवत्ता को अनेकार्थता तक ले जाने में सहायक है।
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हारिल उपन्यास में नैतिक मूल्यों के ह्नास की बात जिस सादगी से उठायी गयी है, वह इस रचना की उपलब्धि है क्योंकि वह उसकी अर्थवत्ता को अनेकार्थता तक ले जाने में सहायक है।
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टेक का सवाल यह कि शमशेर की कविता की अनेकार्थता का समय का आखिर क्या रिश्ता ठहरता है? रही ' स्थिर है शव सी-बात ' की बात, तो मुझे एक मुश्किल है.
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हम सब को अपने-अपने तरीक़ों से मालूम है कि रचना के उत्कर्ष के साथ रचना की अनेकार्थता का क्या रिश्ता है, कि इन दोनों के बीच कोई सरल गणित (मसलन, अनेकार्थता = उत्कर्ष) नहीं काम कर रहा होता.