खुद ही अफसोस करना आंटी बचारी क्या सोच रही होंगि और जब आंटी से मिलने पहुँचें तो आंटी का उन्ही जोक्स में शामिल होना और याद दिलाना कि वो वाल जोक सुना ओ..!
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बड़े-बूढ़ों की बात न सुनने के कारण, बड़े-बूढ़ों की उपेक्षा करने के कारण कितना अफसोस करना पड़ा होता! इसलिए जल्दी न रहने पर भी बारह बजे के अन्दर ही नरहरि को खाना खिला दिया गया।
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ना जी, लोगों के फंसे होने पर क्यूँ रोना, उनके मरने पर क्या अफसोस करना! रोना तो चुनाव में होता है ताकि भोली-भाली जनता आंसुओं में बहे और चंट-चालाक ठेकेदार टाईप नोटों में बहें.
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लेकिन इस पर अफसोस करना कभी नहीं भूलते कि इन्होंने भारत की अपनी भाषाओं में अपना साहित्य क्यों नहीं लिखा? क्या उन्हें पता नहीं है कि भारत का अंग्रेजी शिक्षित वर्ग भारत के सबसे बड़े दुश्मनों में एक है?
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इन्द्र-निःसन्देह उस बटुए का जाना बहुत ही बुरा हुआ! वास्तव में उसमें बड़ी अनूठी चीजें थीं, मगर इस समय उसके लिए अफसोस करना फजूल है, हां इस समय मैं दो चीजों से तुम्हारी मदद कर सकता हूं।
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हां मैं रनबीर शौरी को लेकर जरूर अफसोस करना चाहता हूं कि वे इतनी रीच के अभिनेता होते हुए अपने को ंिसह इज किंग जैसी फिल्मों में नेगेटिव और वह भी कमजोर भूमिकाओं में खुद को व्यर्थ क्यों कर रहे हैं जबकि उनके सामने जावेद जाफरी जैसे अभिनेता अपनी दोहरी भूमिका में खुद को उनसे कहंीं अधिक विस्तारित करते दिखायी देते हैं ।
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खुद ही अफसोस करना आंटी बचारी क्या सोच रही होंगि और जब आंटी से मिलने पहुँचें तो आंटी का उन्ही जोक्स में शामिल होना और याद दिलाना कि वो वाल जोक सुनाओ..! और मुझे समझ में ना आना कि आंटि के साथ उन जोक्स में हँसे घर लौट आयें और घर लौतने पर माँ का फोन कैसी हो बेटा, आंटी के पास जाती रहना..बहुत दुःखी होंगी।
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फिर ऐसे आदमी के मरने पर क्या अफसोस करना जो कीड़ों मकोड़ों की तरह जी रहा है, भारत का हर आम नागरिक एक कीड़ा है, जो ना जीने का हक़दार है और ना ही जिसे मौत भी मयस्सर है, उसे सिर्फ तड़प मिल सकती है, यह आम आदमी, उस चूसने वाले आम की तरह होता है जिसका रस का आनंद उठाया जाता है, और फिर उसे कूड़ा समझ कर फेंक दिया जाता है।
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बहुत ही अच्छा मजेदार पोस्ट है | मेरी मानिये तो तेल के कुए के बारे में अफसोस करना छोडिये सैमसंग वालो को एक पत्र लिख दीजिये की वो अपने महगे मोबाईल भारत में किस्तों में भी दे बिक्री बढ़ जाएगी | सुना है की अब तो गहने भी किस्तों में मिलते है | यदि लगे की ये तो कर्ज जैसे होंगे तो महान विद्वान विचारक चार्वाक जी को याद कर लीजियेगा और संतोष से दोस्ती से तो हमेशा बचियेगा:)