इनके दैनिक आचार संबंधी नियमों में रात और दिन मिलाकर केवल एक ही समय भोजन करना, बस्ती से बाहर निवास करना, अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा ग्रहण करना, केवल पृथ्वी पर ही शयन करना, किसी को प्रणाम न करना और न किसी की निंदा करना तथा केवल संन्यासी का ही अभिनंदन करना आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
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इनके दैनिक आचार संबंधी नियमों में रात और दिन मिलाकर केवल एक ही समय भोजन करना, बस्ती से बाहर निवास करना, अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा ग्रहण करना, केवल पृथ्वी पर ही शयन करना, किसी को प्रणाम न करना और न किसी की निंदा करना तथा केवल संन्यासी का ही अभिनंदन करना आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
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केवल “ प्रार्थना ” ही क्या, हमारी प्रतिदिन की भाषा ऐसे तमाम भाषाई कार्यों को अंजाम देती है-आज्ञा प्रदान करना, रचना करना, प्रतिवेदन करना, अनुमान लगाना, कहानी कहना, अभिनय करना, नारे लगाना, लतीफा गढना, पूछना, धन्यवाद देना, शाप देना, अभिनंदन करना, प्रार्थना करना आदि अनेकानेक ऐसे कार्य है जिन्हें हम भाषा के अंतर्गत ही सम्पन्न कर लेते हैं।
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ऐसे में अगर मुशर्रफ कश्मीरियों को छोड़ने की बजाय सं. रा. प्रस्ताव को छोड़ने की बात कर रहे हैं तो पाकिस्तानियों को उनका अभिनंदन करना चाहिए | वे पाकिस्तान के गले में 55 साल से पड़े सॉंप को उतार रहे हैं | रिन्द के रिन्द रहे और जन्नत भी न गई | अगर पाकिस्तानी लोग दूरंदेश होते तो वे मुशर्रफ की पीठ थपथपाते और कहते कि सं. रा. प्रस्ताव से उनका पिंड छुड़ाकर मुशर्रफ नेे मकबूजा कश्मीर को मुकम्मल तौर पर हथिया लिया है |