| 31. | अपने अक्ष पर पृथ्वी के झुके होने के कारण ही प्रतिवर्ष अयनांश 54 विकला विचलित हो जाता है.
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| 32. | स्थिर अयनांश के कारण हमारे व्रतोत्सव आज जिन ऋतुओं में पड़ते हैं, उन्हीं ऋतुओं में वे निरंतर पड़ते रहेंगे।
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| 33. | अयनांश के निश्चय के बिना आरंभस्थान का निश्चय नहीं होता और आरंभस्थान के निश्चय के बिना पंचांग बन नहीं सकता।
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| 34. | देखना चाहिए कि पंचांग की रचना में कौन सा अयनांश प्रयुक्त हुआ है-ग्रहलाघवीय, चित्रपक्षीय या लहरी इत्यादि।
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| 35. | लहरी अलग अयनांश बताते हैं, कृष्णमूर्ति अलग, रमन अलग, उज्जैन वाले पण्डित अलग तो वाराणसी वाले पण्डित अलग।
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| 36. | जब निरयण गणना की बात आती हैं, तब उसके स्थिर आरंभस्थान का अर्थात् अयनांश का प्रश्न स्वाभाविक ही उत्पन्न होता है।
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| 37. | इतना समझने के बाद हम यह सोच सकते हैं कि हमारा पंचांग सायन अथवा किस अयनांश का निरयण (नाक्षत्र) होना चाहिए।
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| 38. | अलग अलग अयनांश सेटींग शामिल किए गये है जैसे चित्रपक्ष अयनांश या लाहिरी अयनांश, रामन अयनांश, कृष्णमूर्ति अयनांश और शून्य अयनांश ।
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| 39. | अलग अलग अयनांश सेटींग शामिल किए गये है जैसे चित्रपक्ष अयनांश या लाहिरी अयनांश, रामन अयनांश, कृष्णमूर्ति अयनांश और शून्य अयनांश ।
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| 40. | अलग अलग अयनांश सेटींग शामिल किए गये है जैसे चित्रपक्ष अयनांश या लाहिरी अयनांश, रामन अयनांश, कृष्णमूर्ति अयनांश और शून्य अयनांश ।
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