हाँ, देव जी ने भी अब तक जो किया है उससे 'महामना' में मजाक के अर्थ-विस्तार का जरा भी स्पर्श नहीं दिखता..
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आपके ब्लॉग से पता चलता है कि शब्द के मूल अर्थ से रूढ़ अर्थ में किस तरह कई बार अर्थ-विस्तार या अर्थ-भंग हो जाया करता है.
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दरअसल, ' गंगातट ' का दृश्य कविता में एक रूपक बन जाता है-सभ्यता का रूपक, जिसमें ठेठ स्थानीय अनुभव वैश्विक अर्थ-विस्तार प्राप्त करता है।
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मानविकी बड़ा ही सुगम्य शब्द है, जिसकी परिभाषा एवम अर्थ-विस्तार की रेखाएं उतनी सुनिश्चित, सुनिर्धारित नहीं हैं, न ही इसके क्षेत्र की व्यापकता के विषय में सर्वत्र सहमती है।
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(सभायां साधवः-सभ्या) किंतु अर्थ-विस्तार से यह शब्द रहन-सहन की उच्चता तथा सुखयम जीवन व्यतीत करने के साधनों, जैसे-कला-कौशल, स्थापत्य, ज्ञान-विज्ञान की उन्नति पर लागू होता है।
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अर्थ-विस्तार के लिए हम इस उलटे वृक्ष के रूपक को लेकर कल्पना को चाहे जितनी छूट दें, क्या कहीं पर यह बिम्ब मानवीय अस्तित्व के आरम्भ का एक स्मरण-बिम्ब नहीं है?
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इस तरह का मिथकीय अर्थ-विस्तार हमें प्रकृति के अनवरत हवालों, राम द्वारा सीता की खोज के दौरान उनके समर्पित मित्रों की तरह पक्षियों और जानवरों की प्रभावशाली उपस्थिति में भी दूसरे सुर सुनने पर बाध्य करता है।
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यों साहित्य का पाठक-श्रोता मूल रचना में अपना अर्थ ग्रहण करने में ही उस रचना में भी अपनी कुछ व्याख्या जोड़ता चलता है और आलोचक रचना की अपनी विशिष्ट क्षमता पर विचार करके उसे अर्थ-विस्तार प्रदान करता है।
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Ashok Kumar Pandey की ' लगभग अनामंत्रित के बाद की कविताओं में एक नए तरह की बिम्बात्मकता आई है, इन कविताओँ की भाषा भी नए कलेवर में एक नई ऊर्जा के साथ हमें भावोँ तथा अर्थ-विस्तार की नई अनुभूतियाँ कराती है.
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इस हिस्से के अर्थ-विस्तार में अपनी तरफ से डिबोर्ड ने जो सूत्र दिए हैं उनमें से दो ये हैं-“ छविमयता सिर्फ छवियों का संग्रह भर नहीं है, बल्कि एक सामाजिक ताना-बाना है, जिसका निर्माण छवियों के सहारे होता है।