दोस्तों, ऋषि दा के साथ शंकर जयकिशन और शैलेन्द्र के साथ का ज़िक्र तो हमने किया, लेकिन यह भी एक आश्चर्य की ही बात है हम कह सकते हैं कि मुकेश इस दुनिया से २७ अगस्त १९७६ को हमेशा के लिए चले गए थे, और इसके ठीक ३० साल बाद, यानी कि २७ अगस्त २००६ को ऋषि दा हमें अल्विदा कहा था।
32.
दोस्तों, ऋषि दा के साथ शंकर जयकिशन और शैलेन्द्र के साथ का ज़िक्र तो हमने किया, लेकिन यह भी एक आश्चर्य की ही बात है हम कह सकते हैं कि मुकेश इस दुनिया से २ ७ अगस्त १ ९ ७ ६ को हमेशा के लिए चले गए थे, और इसके ठीक ३ ० साल बाद, यानी कि २ ७ अगस्त २ ०० ६ को ऋषि दा हमें अल्विदा कहा था।
33.
सुना? आज फिर अल्विदा कहा है, शांत है, अकेली है रात, पर कल सुबह जब जागोगे, सूरज की हर किरण कहेगी मेरे दिल की बात धूप बढ़ेगी तो इसका एहसास और बढ़ेगा, और शाम को हज़ारों रंगों से फिर सुनना, हल्का सा झोंखा मुझे छूकर तुम तक जायेगा, उसके स्पर्श, उसके एहसास मैं मुझे ढूंढना जब तारे भी वही बोले तो समझना मैं ही थी सांस थामे रात सन्नाटे में खङी थी फिर जब तुम्हारा दिल दोहराया वही लफ्ज़ तो सपनों में मिलना, तुम्हारे इंतज़ार में मैं वही थी...
34.
उसके बाद ' मिशन कश्मीर ', ' दिल चाहता है ', ' कल हो ना हो ', ' लक्ष्य ', ' अरमान ', ' क्यों हो गया ना! ', ' फिर मिलेंगे ', ' रुद्राक्ष ', ' एक और एक ग्यारह ', ' कभी अल्विदा ना कहना ', ' झूम बराबर झूम ', ' बण्टी और बबली ', ' रॉक ऑन ' जैसी फ़िल्मों ने इस तिकड़ी को बेहद लोकप्रिय संगीतकारों की कतार में शामिल कर लिया।