‘ अच् छा तो ये माओवादी और नक् सलवादी लाल हिंसक संविधान द्वारा भारत के नागरिकों को प्रदान की गई सभी स् वतंत्रताओं का लाभ उठा कर निर्लज् ज हो गए हैं और प्रतिष् ठा तथा अवसर की समता प्रदान करने के लिए झारखंड से लेकर मध् य-प्रदेश तक के नागरिकों पर नए-नए प्रयोग कर उनके बीच बंधुता बढ़ा रहे हैं ।
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इसीलिए इसमें भारत के नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक, न् याय, विचार, अभिव् यक्ति, विश् वास, धर्म और उपासना की स् वतंत्रता तथा प्रतिष् ठा और अवसर की समता प्रदान करनें की कामना की गई है तथा व् यक्ति की गरिमा और राष् ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने का संकल् प लिया गया हैं ।
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सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिन न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिये, तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिये दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख २६ नवंबर, १९४९ ई० (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
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प्रदेष प्रवक्ता राजेन्द्र चैधरी ने बताया है कि भारत का संविधान “ एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए उसके समस्त नागरिको को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा तथा अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने “ की गारंटी देता है।
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हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई.
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” हम, भारत के लोग भारत को एक सम्प्रभुता-सम्पन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष जनवादी गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख़ 26 नवम्बर 1949 ई.
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संविधान का उद्देश्य और यथार्थ संविधान की उद्देशिका मंे अंकित है कि “ भारत को एक संप्रभूता सम्पन्न्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा समस्त नागरिकांे को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपसना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब मंे व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं ” ।