| 31. | गरीब ऐसा अविगत राम है, अगम अगोचर नूर | सुनं सनेही आदि है,
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| 32. | निर्गुण राम जपहु रे भाई? अविगत की गति लिखी न जाई ।
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| 33. | ' ' कबीरदास के अनुसार इस अविगत निराधार तत्व का बार-पार नहीं जाना जा सकता।
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| 34. | राम तुम्हार चरित अगम अगोचर बुद्धि पर, अविगत अकथ अपार नेति नेति बेद कह।
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| 35. | अविगत गति कछु कहत न आवै, ज्यों गूंगौ मीठे फल कौ रस अंतर्गत ही पावै।
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| 36. | जो न गया हो वह उसे जान नहीं सकता, कहें तो यह एक अविगत अनुभव है;
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| 37. | अविगत = जिसे जाना ना जा सके| जिसका कभी नाश ना हो | जो व्यतीत न
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| 38. | वह अविगत अपरंपार ब्रह्म ज्ञान रूप और सर्वत्र विद्यमान है उसके समान दूसरा कोई नहीं है।
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| 39. | अविगत गति कछु कहत न आवै! इनकी कहानियां सुनकर इनके कुंवारेपन का घिसा-पिटा राज समझ में आता है:-
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| 40. | लीजिये, ध्यान चकोरा चन्द ||९|| गरीब अलह अविगत राम है, कीमत कही न जाय | नाम निरंतर लीजिये,
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