भाषाओं के संदर्भ में वर्तनी की गलती या अशुद्ध उच्चारण आमतौर पर किसी से भी हो सकता है मगर आसान भाषा की आड़ में बोलचाल के शब्दों से लगातार किनारा करते जाना भयावह है।
32.
यहाँ कहीं-कहीं शब्दों के अशुद्ध उच्चारण, सतही पाठ और दृश्य की परिधि में ठीक से उनके न बाँध वाने की बाकी रही कसर पर प्रदर्शन के बाद कवि-आचोचकों के बीच बहसें भी हुई लेकिन रंगकर्म और कविता के बीच रचनात्मक छटपटाहट और चुनौतियों से पार जाने की जिजीविषा को तो साधुवाद ही मिला।
33.
शिक्षण की वार्षिक योजना बनाते समय कक्षा विशेष की पाठ्य पुस्तकों में प्रयुक्त तथा दैनिक जीवन में प्रयोग में आने वाले शब्दों की सूची तैयार कर सत्र के प्रारम्भ में ही विद्यार्थियों को ऐसे शब्दों का शुद्ध उच्चारण बताया जाए और बाद में उनका अभ्यास एवं अनुवर्तन होता रहे तो अशुद्ध उच्चारण की समस्या से बचा जा सकता है ।
34.
सरकारी हिन्दी डिल्लू बापू पंडित थे बिना वैसी पढ़ाई के जीवन में एक ही श्लोक उन्होंने जाना वह भी आधा उसका भी वे अशुद्ध उच्चारण करते थे यानी `त्वमेव माता चपिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश चसखा त्वमेव ' इसके बाद वे कहते कि आगे तो आप जानते ही हैं गोया जो सब जानते हों उसे जानने और जनाने में कौन-सी अक़्लमंदी है?
35.
मेरा यहां ये सब कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आदि से पूजन आदि नहीं करना चाहिये मेरा कहना सिर्फ़ यह हैं कि यदि आप शुद्ध संस्कृत उच्चारण करने में सक्षम हैं तो आवश्य संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आदि का प्रयोग करें अन्यथा संस्कृत के मंत्र-श्लोक-सूक्त आसि का अशुद्ध उच्चारण आपकी आपेक्षाओं के विपरीत अशुभ परिणाम प्रदान कर सकता है!