कुलथी को आयुर्वेद शास्त्र ने मूत्र संबंधी विकारों और अश्मरी रोग को दूर करने के लिए विशेष रूप से उपयोगी बताया है।
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छोटी अश्मरी कभी कभी अपने आप बाहर निकल आती है, पर बड़े आकार की अश्मरियों को शल्य से निकाला जा सकता है।
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छोटी अश्मरी कभी कभी अपने आप बाहर निकल आती है, पर बड़े आकार की अश्मरियों को शल्य से निकाला जा सकता है।
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अश्मरी भेदन में (पथरी को तोड़ना, मूत्र मार्ग से ही बाहर निकालना) हेतू भी इसे उपयोगी माना गया है।
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अश्मरी भेदन (पथरी को तोड़ना, मूत्र मार्ग से ही बाहर निकाल देना) हेतु भी इसे उपयोगी माना है ।
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मूत्राशय कर्कट के कारणों में मूत्र अवरोधन, संक्रमण, विपुटी अश्मरी तथा ऐनिलीन, बेंजीडीन आदि रासायनिक रंजकों का आहार में प्रयोग भी होता है।
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श्री भाव मिश्र गोक्षुर को मूत्राशय का शोधन करने वाला, अश्मरी भेदक बताते हैं व लिखते हैं कि पेट के समस्त रोगों की गोखरू सर्वश्रेष्ठ दवा है ।
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पीनश में-इसकी पत्ती का रस नाक में टपकाना चाहिये | पाढ की क्वाथ, बस्ती दाह,क्षत,रक्तातिसार, अश्मरी (पथरी) और पेचिश इन रोगों का नाश करता है |
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इलायची का चूर्ण खरबूजे की बीजों की मींगी और मिश्री मिलाकर 2-3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से वृक्क की अश्मरी (गुर्दे की पथरी) में लाभ प्राप्त होता है।
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मूत्रमार्ग संकोच तथा नाना प्रकार के और भी कारण होते हैं, पर जहाँ कहीं भी रुकावट होती है उसके पीछे के मूत्रतंत्र में सर्वदा क्रमश: विस्तारण (dilatation) फिर संक्रमण और अश्मरी निर्माण तथा कभी-कभी अर्बुद भी बन जाते हैं।