आज वारिद रो रहे हैं! कुटिल जग की कालिमा निज अश्रुजल से धो रहे हैं! आज वारिद रो रहे हैं!
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रानी: (टपकते हुए अश्रुजल से आर्द्र कपोलों को पोंछती हुई) हृदय वल्लभे! मैंने भी बड़ा भयंकर स्वप्न देखा है।
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आँखें जब खुलीं तो देखा सावित्री और बहुत सी लड़कियों के साथ वटवृक्षों की देह के चारों ओर घूमकर अश्रुजल के धागे बाँध रही है।
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उन्होंने अपने सौ नेत्रों से मुनियों को देखा तथा मुनियों के दुख से संतप्त होकर, मां की आंखों से अश्रुजल की हजारों धाराएं बहने लगीं।
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हे प्रियजन, त्वचा, मांस, रक्त और अश्रुजल को अलग करके नेत्र को देखो, यदि वह रमणीय है तो उस पर आसक्ति करो।
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कितने ही भाव बहे, स्नेह, श्रद्धा, आदर, मुस्कुराहटें, प्रेममयी अश्रुजल कितना कुछ था की समय को अनदेखा करना ही उचित जान पड़ा......
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देश का दुःख देख लुइत सिसक रही रोक न पाये कोई अश्रुजल अहिंसा युद्ध में रण की रणभेरी बजे बार बार जाये तत्काल विमुख न करना हमें माँ।
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भारत के स्वाभिमान के लिए यह एक सुखद घटना थी लेकिन भारतेन्दु इससे शोकाकुल हुए-हे भारतवर्ष की प्रजा, अपने परम प्रेमरूपी अश्रुजल से उपराज्य अधीश का दर्पण करो.
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विश्वामित्र: (टपकते हुए अश्रुजल से आर्द्र कपोलों को पोंछती हुई) अरे शेखी बखारने वाले पाखंडी! यदि तूँ सचमुच सूर्यवंशी है, यदि तुम्हें सचमुच अपने वचन का निर्वाह करना है तो दे मेरी पृथ्वी!
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बार-बार एक सूत्र में, आप संग बिताये छणों को, गुथती-पिरोती हूं. संभवत: आप इसे मानने से इंकार करें, कि इस खामोश घर में, भीगी आंखों में बंद, अश्रुजल को सहेज कर रखी हूं.