लेकिन आप और में एक सवाल तो अपने आपसे पूछ ही सकते है की अगर वो अलग होना चाहते है तो हमारी किस देशभक्ति की परिभाषा मे कश्मीर का आज़ाद करना देशद्रोह है.
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तो इसका प्रायश् चित दस मुहताजों को औसत दर्जें का खाना खिला देना है, जो तुम अपने बाल-बच्चों को खिलाते हो या फिर उन्हें कपड़े पहनाना या एक ग़ुलाम आज़ाद करना होगा।
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तब 16 अगस्त 1946 को बंगाल के कई वर्तमान वामपंथी उस समय साथ मौजूद थे और उन्होंने नारा दिया था कि ” पहले पाकिस्तान देना पड़ेगा, उसके बाद भारत को आज़ाद करना है।
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लेकिन आप और में एक सवाल तो अपने आपसे पूछ ही सकते है की अगर वो अलग होना चाहते है तो हमारी किस देशभक्ति की परिभाषा मे कश्मीर का आज़ाद करना देशद्रोह है.
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ये तुम्हारे चेहरे पर प्यास के निशान क्यों उभर आये हैं....? सकपकाए से तुम्हारे शब्द इतने विचलित क्यों हैं......? मैं नहीं तोडूंगी तुम्हारे एक्वेरियम की दीवारें तुम्हें खुद मुझे बुर्के से आज़ाद करना होगा...
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और वह कफ्फारा: एक गुलाम आज़ाद करना है, और जो इस पर सक्षम न हो वह लगातार दो महीने रोज़ा रखे, और जो इसकी ताक़त न रखता हो वह 60 मिस्कीनों को खाना खिलाये।
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ये तुम्हारे चेहरे पर प्यास के निशान क्यों उभर आये हैं....? सकपकाए से तुम्हारे शब्द इतने विचलित क्यों हैं......? मैं नहीं तोडूंगी तुम्हारे एक्वेरियम की दीवारें तुम्हें खुद मुझे बुर्के से आज़ाद करना होगा...
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और कफ्फारा एक गुलाम आज़ाद करना है, यदि वह न मिले तो दो महीने लगातार रोज़ा रखेगी, यदि इसकी भी ताक़त नहीं है तो शहर की खूराक (भोजन) से साठ मिस्कीनों को खाना खिलायेगी।
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क़सम का कफ्फारा दस मिसकीनों को खाना खिलाना, या उन्हें कपड़ा पहनाना, या एक गर्दन (गुलाम या लौंडी) आज़ाद करना है, और जो व्यक्ति इन चीज़ों को न पाये: तो तीन दिन रोज़ा रखे।
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यह बात किसी पर रहस्य नहीं कि जिस व्यक्ति ने रमज़ान के दिन में अपनी पत्नी से संभोग कर लिया उस पर एक गुलाम आज़ाद करना या लगातार दो महीने रोज़े रखना या साठ मिस्कीनों (गरीबों) को खाना खिलाना अनिवार्य है।