चिंतन या प्रत्ययन पहले से विद्यमान ज्ञान के भी (उदाहरणार्थ, बच्चे द्वारा) और नये ज्ञान के अर्जन के लिए भी (मुख्यतः वैज्ञानिकों द्वारा) आत्मसात्करण की मुख्य पूर्वापेक्षा (rerequisites) है।
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उदाहरण के लिए, बच्चे द्वारा बहुत सारी ऐतिहासिक संकल्पनाओं का आत्मसात्करण बड़ा आसान हो जाता है, यदि उसे इनसे संबंधित चित्र, मॉडल्स, आदि भी दिखाए जाएं और कविताएं व कहानियां भी सुनायी जाएं।
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सहयोग की स्थिति में व्यवस्थापन तथा आत्मसात्करण समता स्थापन के साधन होते हैं और असहयोग की स्थिति में प्रतिस्पर्धा, विरोध एवं संघर्ष की शक्तियाँ क्रियाशील होती हैं और अंतत: सबल संस्कृति निर्बल संस्कृति को समाप्त कर समता स्थापित करती है।
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सहयोग की स्थिति में व्यवस्थापन तथा आत्मसात्करण समता स्थापन के साधन होते हैं और असहयोग की स्थिति में प्रतिस्पर्धा, विरोध एवं संघर्ष की शक्तियाँ क्रियाशील होती हैं और अंतत: सबल संस्कृति निर्बल संस्कृति को समाप्त कर समता स्थापित करती है।
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सहयोग की स्थिति में व्यवस्थापन तथा आत्मसात्करण समता स्थापन के साधन होते हैं और असहयोग की स्थिति में प्रतिस्पर्धा, विरोध एवं संघर्ष की शक्तियाँ क्रियाशील होती हैं और अंतत: सबल संस्कृति निर्बल संस्कृति को समाप्त कर समता स्थापित करती है।
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विषयों से संबद्ध संकल्पनाओं के निर्माण तथा आत्मसात्करण का अनेक मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों के दौरान अध्ययन किया गया है और पता लगाने का प्रयत्न किया गया है कि संकल्पनाओं के कौन-से लक्षण किस क्रम में और किन परिस्थितियों में छात्रों द्वारा आत्मसात् किये जाते हैं।
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राष्ट्रीय जागरण, प्रगतिषील विचारों के आत्मसात्करण एवं सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक आंदोलनों में अधिकाधिक सहयोग की दृष्टि से राष्ट्रों के इतिहास में प्रेस की बहुत बड़ी भूमिका रही है और इस मामले में उर्दू प्रेस ने भी अपनी निर्णायक भूमिका का निर्वाह किया।
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उनके अध्ययन का दायरा व्यापक था जिसमें उत्तर-औपनिवेशिक सत्ता की प्रकृति, सामाजिक संरचना, भाषा, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में साम्राज्यवादी मूल्यों, नीतियों एवं ढाँचे के देशी बुर्जुआ वर्ग द्वारा आत्मसात्करण तथा सांस्कृतिक प्रतिरोध के आयामों एवं रूपों पर विमर्श शामिल था।
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आत्मसात्करण के संदर्भ में एक ऐतिहासिक तथ्य यह है कि आज हिन्दू लोग गाय को ‘ गोमाता ` कहकर गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए धार्मिक दंगा फैलाने का सतत् प्रयत्न करते रहते हैं, किन्तु सदियों पहले ये हिन्दू वैदिक यज्ञों में हजारों गायों की न सिर्फ बलि चढ़ाते थे, बल्कि उसका मांस भी खाया करते थे।
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इस तरह भाषा, छात्रों के सामने संकेतों की एक ऐसी जटिल पद्धति के रूप में प्रकट होती है, जिसके अपने सामाजिकतः निर्धारित नियम हैं और जिसके इन नियमों के आत्मसात्करण से वे न केवल सही पढ़, लिख व बोल सकेंगे, बल्कि मानवजाति द्वारा उनसे पहले सृजित (created) समस्त आत्मिक संपदा का उपयोग भी कर सकेंगे।