अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सर्व प्रथम मेरा ध्यान अधीनस्थ न्यायालय की पत्रावली के आदेश पत्र दिनांकित 7-5-2008 की ओर आकृष्ट किया गया एवं तर्क दिया गया कि उक्त आदेशपत्र के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि अधीनस्थ न्यायालय में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा इस तिथि को स्थगन प्रदान करने की मॉग की गयी थी तथा यह कहा गया था कि वाद में आवादकार द्वारा दिनांक 18-11-03 को जबाबदावा प्रस्तुत किया गया है जिसके समर्थन में कोई भी अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गया है तथा अगली तिथि प्रदान करने की मॉग की गयी थी।
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यह तथ्य भी अंकित किया गया है कि वस्तुतः प्रार्थना पत्र प्रपत्र सं. 34ग दिनांकित-13.5.92 का अवर न्यायालय के आदेशपत्र में अंकन न किए जाने के कारण उक्त प्रार्थना पत्र का निस्तारण नहीं हो सका था और विद्वान अवर न्यायालय द्वारा इस सम्बन्ध में प्रार्थना पत्र प्रपत्र सं. 105ग के माध्यम से निगरानीकर्तागण द्वारा ध्यान आकर्षित किए जाने के बावजूद भी प्रार्थना पत्र प्रपत्र सं. 105ग को अपने क्षेत्राधिकार से परे जाते हुए और विवेक का प्रयोग किए बिना निरस्त कर दिया गया है जिसके कारण निगरानीकर्तागण को अपूर्णनीय क्षति की सम्भावना उत्पन्न हो गई है।