फिर उसने सोचा कि हाल चल लेने आया था तो वही से शुरू किया जा य. “ कहिये अब आप कैसी हैं? ” “ ठीक हूँ. ” “ अब कब तक आपको यहाँ रहना पाएगा? ” ” अभी तो कुछ बताया नहीं है, वैसे यहाँ अच्छा है.
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मुझे देख मुस्कुराई, प्रत्युत्तर में मैं भी मुस्कुराई, शाम छ: बजे गमलों में पानी डालने बालकनी में गई, वह महिलाये अभी भी झूले पर बैठी इधर उधर की बतिया बना रही थी, मैंने सोचा हद हो गई, कैसे बैठी हैं आराम से? मुझे पूछा कैसी हो? जी ठीक हूँ आप कैसी हैं? बस ठीक हैं ।
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अप्पू नें अपनी गोदी में पड़ी निगाह को मेरी तरफ उठाया था, “ ठीक हूं '' वह कुछ क्षण चुप रही थी, ‘‘ आप कैसी हैं? ” फिर लगा था जैसे अपने आने की माफी मांग रही हो, ‘‘ लखनऊ आयी थी तो किसी ने बताया कि आप यूनिवर्सिटी में पढ़ा रही हैं तो मन नहीं माना और बहुत हिम्मत करके आपसे मिलने चली आयी।