लेकिन अब जो आएगी तो उसमें देखना जरा कि कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है और लिखते वक्त तो मैं बड़ी स्वाभिकता से लिख जाती हूँ, लेकिन बाद में जो बवाल उठते हैं तो फिर मैं सोचती हूँ कि क्या इसके बारे में मैंने सोचा नहीं, लेकिन बच के निकलना मेरी शायद आदत में नहीं, मेरे स्वभाव में नहीं, यह खतरनाक खेल अपने आप कैसे हो जाते हैं यह मेरी समझ में उस वक्त नहीं आता जब मैं लिख रही होती हूँ।