उनका आभ्यंतरिक शरीर तो अपने-आप में चैतन्य, सजग, सप्राण, पूर्ण योगेश्वर का है, जिनको एक-एक पल का ज्ञान है और उस दृष्टि से वे हजारों वर्षों की आयु प्राप्त योगीश्वर हैं, जिनका यदा-कदा ही जन्म पृथ्वी पर हुआ करता है।
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उसके बाद एक हमलावर रक्त वाहिनी के लिए तंत्रिका की छानबीन की जाती है, और जब वह मिल जाता है, तो रक्त वाहिनी और तंत्रिका को एक छोटे पैड से अलग या “विसंपीड़ित” कर दिया जाता है, जो आम तौर पर टेफलन (Teflon) जैसी एक आभ्यंतरिक शल्य चिकित्सीय सामग्री से बना होता है.
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उष्णदेशीय आयुर्विज्ञान उन व्याधियों पर विशेष ध्यान देता है जो समशीतोष्ण किंतु अधिक उन्नत देशों में आभ्यंतरिक (दबी हुई) रहती हैं; परंतु यक्ष्मा (तपेदिक), उपदंश आदि व्याधियों पर, जो विश्व में समान रूप से फैली हुई हैं, विशेष ध्यान नहीं देता, यद्यपि ये ही रोग इन देशों में होनेवाली अधिकांश मृत्युओं का कारण होते हैं।
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उष्णदेशीय आयुर्विज्ञान उन व्याधियों पर विशेष ध्यान देता है जो समशीतोष्ण किंतु अधिक उन्नत देशों में आभ्यंतरिक (दबी हुई) रहती हैं; परंतु यक्ष्मा (तपेदिक), उपदंश आदि व्याधियों पर, जो विश्व में समान रूप से फैली हुई हैं, विशेष ध्यान नहीं देता, यद्यपि ये ही रोग इन देशों में होनेवाली अधिकांश मृत्युओं का कारण होते हैं।