योग के विभिन्न प्रकार हैं-कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग | भगवद गीता आरम्भ से अंत तक योग ही है, और इस सब का एकीकरण, सब कुछ साथ ले कर जीवन में आगे बढ़ना अनिवार्य है |
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आरम्भ से अंत तक बांधे रखा! कई बार शरीर में सिहरन सी अनुभव हुयी! पता नहीं ऐसी कहानी लिखी जनि चाहिए या नहीं.... पर..... पढता चला गया और दो-तीन बार पढ़ कर कमेन्ट करने की हालत में आया...
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आरम्भ से अंत तक पृष्ठ-पृष्ठ पर वर्तनी और व्याकरण के दोषों पर पाठक सिर पीटने के अलावा कुछ नहीं कर सकता! कहना ही होगा कि अनुवादक की लापरवाही ने तेलुगु की एक उत्कृष्ट कृति की हत्या करने में कोई कसर नहीं छोडी है..
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आरम्भ से अंत तक कहानी ने पाठक को बाँध कर रखा है सच तो यही है कि ये माहौल व्यक्ति की जीने की इच्छा छीन लेता है पति हो या पत्नी शक का कीड़ा जिस के भी दिमाग़ में कुलबुलाया घर बर्बाद करने के लिए काफ़ी होता है बहुत सुन्दर कहानी!!
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आदरणीया दिव्या जी, आप ने कथ्य, शैली, और प्रस्तुति की नवीनता तथा कथा में अनुस्यूत ‘ रेशमी ख़्वाब ' से बुने ‘ इश्क ' से प्रक्षेपित सन्देश को बड़ी संजीदगी से अभिव्यक्त किया है | इसमें पाठक आरम्भ से अंत तक बँधा रहता है | हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ!
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ऐसे में परिवहन विभाग के अधिकारियों और सामाजिक संस्था के मिले जुले किसी भी प्रयास को सकारात्मक नजरिये से देखे जाने की आवश्यकता है. फिल्म “चलो संभल के,रहो संभल के”सडक सुरक्षा विषय पर बनाई गई प्रथम लघु फिल्म है जो हिंदी में है.लगभग एक घंटे की यह फिल्म आरम्भ से अंत तक अपनी सोद्धेश्यता को कायम रखती है.
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जिन धागों को पकड़ने की तरफ़राहट पूर्व के तमाम पोस्ट में देखता आ रहा हूँ, इस पोस्ट के आरम्भ से अंत तक इस तरह गुम्फित हैं जैसे वाक्य नहीं शिराएं हों ' और पूरी धमक से रक्त की मानिंद-वो शाश्वत सत्य जिससे मानव जीवन-समाज की बुनियाद बनी है-उफनती चली आ रही हों जैसे...
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यहाँ अति संकोच परन्तु पूरी जिम्मेदारी के साथ मैं यह कहने की अनुमति चाहता हूँ कि अनुवादक को ऐसे महत्त्वपूर्ण साहित्यिक सांस्कृतिक पाठ का अनुवाद करते समय जिस जागरूकता से काम लेना चाहिए, उसका आरम्भ से अंत तक अनेकानेक स्थलों पर अभाव इस अनूदित पाठ को विषय की गरिमा के निर्वाह में अक्षम बनाता प्रतीत होता है.
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परन्तु फिल्म आरम्भ से अंत तक एक सशक्त सामाजिक सन्देश देती है कि आदमी जानते हुए भी कैसे अनुशासन भंग करता है. परिवहन विभाग,राजस्थान राज्य परिवहन सेवा परिषद् और मानव जीवन रेखा संस्थान ने सीमित संसाधनों से अल्प समय में सड़क सुरक्षा विषय पर देश की पहली हिंदी भाषा में बनी लघु फिल्म का निर्माण किया है जो सराहनीय प्रयास है.
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आदरणीय अविनाश जी, अभिव्यंजित भावनाओं से ओत-प्रोत वेलेंनताइनी बसंत (इक्कीसवीं सदी के तेरहवें भारतीय बसंत) के आगमन पर आप का यह किसी भी फूल को न छोड़नेवाला (चम्पा को भी नहीं) भौंराया आलेख आरम्भ से अंत तक गुदगुदाता रहा | हार्दिक साधुवाद एवं सदभावनाएँ! किसिंग (माफ़ कीजिए, शून्य हगिंग के साथ!) बधाई!