दक्षिण भारतीय समाज पर भी यदि दृष्टि डालें (जो सातवाहनों के समय ही ब्राह्मणवाद के प्रभाव में आ चुका था), तो वहाँ भी, ईसा पश्चात पहली सहस्राब्दी के मध्य तक ग्राम समुदायों की किसान आबादी शक्तिशाली सामन्तों के कमरतोड़ लगान के नीचे पिस रही थी, पहले समुदायों में उपभोग किये जाने वाले अधिकारों से भी वे वंचित हो चुके थे और समुदायों के मुखिया धीरे-धीरे सामन्ती ज़मीन्दारों जैसी हैसियत पा चुके थे।