कांचा ऐलय्या की किताब ' मैं हिन्दू क्यों नहीं ' का उप शीर्षक हिन्दुत्व दर्शन, संस्कृति और राजनीतिक अर्थशास्त्र का एक शूद्रवादी विश्लेषण ज़रूर है मगर किताब अपने विश्लेषण पक्ष में कुछ दुर्बल रह जाती है और अपनी पहले से तय की हुई प्रस्थापनाओं को सिद्ध करने की आतुरता में अधकचरे निर्णय सुनाने लगती है।
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सुशील जी, आप तो छा गए, बहुत उम्दा, बहुत सार्थक और बहुत मारक भी, देवरिया के पत्रकारिता की नब्ज पकड़ी है आपने, देवरिया में पत्रकार दुनिया में हर जगह से आधिक ही होंगे, काश जाने से प्पहले प्रभाषजी जोशी भी इस बात को मान लेते, लेकिन उनके जाने के बाद ही ये आ पाया, पत्रकारिता के घरेलु वातावरण ने आपको बहुत माल डे दिया, उप शीर्षक भी जानदार हैं, बधाई आपको और अरुण को भी