| 31. | अर्थ-किन्नर, उरग, राक्षस, देवता, मनुष्य और ऋषियों के समूह वृक्षों का आश्रय स्वीकारते है ।
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| 32. | ये मछली तथा उरग दोनों श्रेणियों के बीच के प्राणी हैं, जो जल तथा स्थल दोनों ही पर रह सकते हैं।
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| 33. | उभयचर तथा उरग उष्ण तथा शीतोष्ण भागों में पाए जाते हैं और ध्रुव प्रदेशों की ओर ये कम होते जाते हैं।
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| 34. | इन ग्रहों पे दैत्य, दानव, पनी, निवत कवच, राक्षस, कालकेय, नागा, उरग रहते हैं।
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| 35. | उभयचर तथा उरग उष्ण तथा शीतोष्ण भागों में पाए जाते हैं और ध्रुव प्रदेशों की ओर ये कम होते जाते हैं।
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| 36. | उभयचर तथा उरग उष्ण तथा शीतोष्ण भागों में पाए जाते हैं और ध्रुव प्रदेशों की ओर ये कम होते जाते हैं।
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| 37. | ये मछली तथा उरग दोनों श्रेणियों के बीच के प्राणी हैं, जो जल तथा स्थल दोनों ही पर रह सकते हैं।
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| 38. | उरग और पक्षी अपने अंडे शरीर से बाहर निकाल देते हैं और परिवर्धन की पूरी क्रिया मादा के शरीर के बाहर होती है।
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| 39. | बहुत पूर्व ऐसा विश्वास किया जाता था कि जिस प्रकार कुछ स्तनपायी और उरग शरद ऋतु में ठंढ से बचने के लिए शीत निष्क्रियता (
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| 40. | ये गुणसूत्र ऐसे जंतुओं के अंडों के केंद्रकों में पाए जाते हैं जिनमें अंडपीत की मात्रा अधिक होती है, जैसे मछली, उभयचर, उरग, पक्षीगण इत्यादि।
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