पर मैं लोगों की अधीरता समझ सकझ सकता हूँ क्योंकि कानून इतना वक्त लगा देता है कि बात का मतलब ही नहीं रहता या फ़िर कानून को घुमा कर उल्लू बनाना शायद अधिक आसान है जबकि टेलीविज़न में दिखा कर “तुरंत न्याय” हो जाता है.
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पर मैं लोगों की अधीरता समझ सकझ सकता हूँ क्योंकि कानून इतना वक्त लगा देता है कि बात का मतलब ही नहीं रहता या फ़िर कानून को घुमा कर उल्लू बनाना शायद अधिक आसान है जबकि टेलीविज़न में दिखा कर “ तुरंत न्याय ” हो जाता है.
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उल्लू बनाना ', ‘ अपना उल्लू सीधा करना ', ‘ उल्लू का पट्ठा ', ‘ काठ का उल्लू ', ‘ उल्लू बोलना ' और ‘ उल्लू कि तरह ताकना ' आदि मुहावरे यह बताते हैं कि उल्लू हमारे रग रग में कितना रचा बसा है।
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हमें योर के रेगिस्तान में चौकीदार को उल्लू बनाना है, सीवरों से अपना रास्ता बनाते हुए पहुंचना है वारसा के केन्द्र तलक सम्राट हैरल्ड बटरपेट तक पहुंचना है और फौशे को मंत्री पद से बर्खास्त किए जाने का इंतजार करना है केवल एकलपुल्को जा कर ही हम नए सिरे से सफ़र शुरू कर सकते हैं.
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पर मैं लोगों की अधीरता समझ सकझ सकता हूँ क्योंकि कानून इतना वक्त लगा देता है कि बात का मतलब ही नहीं रहता या फ़िर कानून को घुमा कर उल्लू बनाना शायद अधिक आसान है जबकि टेलीविज़न में दिखा कर “तुरंत न्याय” हो जाता है. पर एक बार टेलीविज़न में दिखाने के बाद, कुछ दिनों के हल्ले के बाद क्या होता है?
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जब हम हँसते है तो वे उसके बाद भी ऐसे प्रश्नों की बौछार करना प्रारंभ कर देते है, जो हमारे पास उनको बताने की लिए जवाब ही नहीं होता और ऐसी स्थिति में हम उन्हें या तो डरा देते है या उन्हें उल्लू बनाना सीख जाते है लेकिन वे तो समझते ही है की यह गलत बातें बताई जा रही हैI
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लेकिन मैं यह सोच कर, देख कर सकते में हूं कि चलो, हमारे यहां की तो बात क्या करें, हम लोगों की जान की तो कीमत ही क्या है, लोगों को उल्लू बनाना किसे के भी बायें हाथ का खेल है लेकिन अमेरिका जैसे विकसित देश में भी अगर ये सब चीज़ें बिक रही हैं तो निःसंदेह यह एक बहुत संगीन मामला है।
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रियेलिटी शो में अब एक और अजब-गज़ब गड़बड़झाला और घोटाला वो भी “ बिग बॉस के घर में ” ………………. क्या भारतीय मीडिया इतना अपाहिज या शेखचिल्ली हो गया, कि उसमें सृजनात्मकता और कल्पनात्मक अभिव्यक्ति नाम की चीज़ ही नहीं रही …………….. टी. आर. पी. के चक्कर में बखेड़े-पर-बखेड़ा ………… जनता को उल्लू बनाना और चूना लगाना ही इनकी कलात्मकता और मौलिकता है.
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नायक का बात-बात में क़ानून की धाराओं का उल्लेख करना, पत्नी पर केवल इसलिए मुक़दमा दायर कर देना कि उसने भोजन तैयार करने में ज़रा-सी देर कर दी, फिर वकीलों के नख़रे और देहाती गवाहों की चालाकियाँ और झाँसे, पहले गवाही के लिए चट-पट तैयार हो जाना ; मगर इजलास पर तलबी के समय ख़ूब मनावन कराना और नाना प्रकार के फ़रमाइशें करके उल्लू बनाना, ये सभी दृश्य देखकर लोग हँसी के मारे लोटे जाते थे।
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जो लोग इन घोटालों में शामिल थें उन्हे अहसास हो रहा था, आज नही तो कल उनकी गर्दन नपेगी, बचाव का उपाय एक हीं नजर आया, राजनितिक अस्थिरता पैदा कर के सरकार को गिराओ, उसके बाद किसी वैसे आदमी को सता में लाओ जिसे अपने इशारे पर नचाया जा सके, इधर रामदेव की मह्त्वकांक्षा परवान चढ रही थी, एक शख्स यह देख चुका था, जनता भेड है, उसे उल्लू बनाना आसान है ।