सदैव ही चैतन्य हूँ. दो चीज़ों में गठान लगाने के लिए उन्हें परस्पर संपृक्त करने जोड़ने के लिए एक जैसा होना पड़ता है.
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मेरा मानना है कि समस्या के अध्ययन के लिए भले ही इन्हें अलग मान लें, परन्तु समाधान तो सभी के लिए एक जैसा होना चाहिए।
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यह देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि जो निर्जीव हैं, उनमें प्रतिसाद कम-ज्यादा नहीं होना चाहिए, वह तो यांत्रिक होने के कारण एक जैसा होना चाहिए।
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तमाम जातियों के लोगों का सामाजिक जीवन स्तर एक जैसा होना चाहिए ताकि जन्म से ही अच्छे संस्कार मिलें और कोई भी अपने को दीन-हीन न समझे.
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अम्माबाद! देखो अगर वाली के ख़्वाहिशात मुख़्तलिफ़ क़िस्म के होंगे तो यह बात उसे अक्सर औक़ात इन्साफ़ से रोक देगी लेकिन तुम्हारी निगाह में तमाम अफ़राद के मामलात को एक जैसा होना चाहिये के ज़ुल्म कभी अद्ल का बदल नहीं हो सकता है।
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इलाहाबाद छूटने के कुछ समय बाद मैंने कैलाश जी को लेकर एक कहानी ‘ बड़े सज्जन आदमी हैं लेकि न... ' शुरू की थी लेकिन इसलिए छोड़ दिया कि कहीं वो ‘ बाबा एगो हईये हउयें ' जैसी ना हो जाए क्योंकि दोनों का अन्त एक जैसा होना तय था.
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भारतीय अध्यात्म की पहली शर्त यही है कि आपका ज्ञान और आचरण एक जैसा होना चाहिये तभी आपको मान्यता मिलेगी वरना तो बेकार की नाटकबाजी कर तात्कालिक लोकप्रियता-जो कि एक तरह से भ्रम ही है-प्राप्त कर लें पर उससे आप स्वयं इस संसार से अपना उद्धार नहीं करेंगे दूसरे का क्या करेंगे?
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तेंडुलकर ने अपने कैरियर की शुरुआत से जिस तरह क्रिकेट के प्रति अपना जुनून बरकरार रखा है, वैसा ही जुनून ब्लॉगिंग करते समय लगातार बनाये रखें… 2) कप्तान कोई भी रहे, प्रदर्शन एक जैसा होना चाहिये-जिस तरह तेंडुलकर ने अज़हरुद्दीन से लेकर महेन्द्रसिंह धोनी तक की कप्तानी में अपना नैसर्गिक खेल दिखाया, किसी कप्तान से कभी उनकी खटपट नहीं हुई, वे खुद भी कप्तान रहे लेकिन विवादों और मनमुटाव से हमेशा दूर रहे और अपने प्रदर्शन में गिरावट नहीं आने दी।
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भौगोलिक हिसाब से दूर और पास के क्षेत्रों से हमारे अतिथि यहाँ आए हैं जिनका संबन्ध अलग अलग राष्ट्र और नस्लों से है और जो विभिन्न प्रकार के विश्वास, संस्कृति, ऐतिहासिक और विरासती प्रष्ठभूमि रखते हैं लेकिन जैसा कि इस आंदोलन की नींव रखने वालों में से एक अहमद सूकारनू ने 1955 की मशहूर बान्डूँग बैठक में कहा था, कि गुट निरपेक्ष आंदोलन का आधार भौगोलिक, नस्ली, और दीनी रूप में समानता नहीं है बल्कि आवश्यकताओं का एक जैसा होना है।
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उससे ज्यादा जरूरी प्राथमिक ओर उसके बाद की शिक्षा का एक जैसा होना ज्यादा जरूरी है. क्यूंकि गाँवों ओर कस्बो के प्रतिभाशाली छात्र भी कई बार अंग्रेजी ज्ञान ओर एक्सपोज़र की कमी से कई नौकरियों में पिचड जाते है,शिक्षा का उद्देश्य ऐसी प्रतिभायों के साथ समुचित न्याय करना है ताकि वे इस देश की प्रगति में भी अपना योगदान कर सके ओर साथ के साथ मिडिल क्लास के पास जो एक मात्र शिक्षा ही है अपने जीवन यापन को बेहतर बनाने का तरीका,वो कायम रहे