वरना मेरे जैसे बाकी के साथी तो आज भी हैं, एलाइव एंड किकिंग, मगर सशक्त तो क्या अशक्त हस्तक्षेप करने की स्थिति में भी हम कहां हैं आज की तारीख में? शायद यह सब आज की तारीख में हम सब जिंदा साथियों की केन्द्रीय भूमिका के कारण उस वक्त सम्भव नहीं हो सका था वरन वो मरहूम साथी रामनरेश शर्मा के विद्युतीय व्यक्तित्व की केंद्रीय भूमिका की वजह से ही सम्भव हो सका था।