पहले पारा और गंधक की कज्जली बना लें और फिर बाकी औषधियों को पीस-छानकर गाय के पेशाब में मिलाकर अच्छी तरह से एक दिन तक सुखाएं और साथ ही इसे उलट-पलट कर मिलते रहें।
32.
आसमान में घुमड़ती काली घटाओं के कारण ही इस त्यौहार या पर्व को ' कजली ' या ' कज्जली तीज ' तथा पूरी प्रकृति में हरियाली के कारण ' तीज ' के नाम से जाना जाता है।
33.
इसके विपरीत यदि कोई कज्जली कृत (कार्बनायिज्ड) या गहरे रंग वाला ग्रह जैसे शनि, मंगल या राहू पांचवें भाव में बैठा है तो वह ग्यारहवें भाव में बैठे सूर्य की किरणों को अवशोषित कर लेता है.
34.
कज्जली-पारद (पारा) को गन्धक के साथ या पहले पारद के सुवर्णादि धातुओं का सूक्ष्म चूर्ण या अर्क मिलाकर बाद में गंधक के साथ खरल में पीसने पर काजल जैसा काला बन जाने वाले पदार्थ को कज्जली कहते हैं।
35.
इसमें पारे गन्धक की कज्जली चार तोले, भुना हुआ सुहागा, सफेद कत्था, चीनी, कमेला, काली मिर्च, राल, मुर्दासंग, भुना हुआ नीलाथोथा, भुनी हुई फिटकड़ी, मैनशिल और गन्धक-ये सब दो-दो तोले लेवें ।
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पूर्व कज्जली कर शेष का महीन चुर्ण कर सब को एकत्र कर कुमारी रस मे २ दिन मर्दन कर, दो दो रत्ती की वरिआं कर सोनें समय १-१ या२-२ वटी यथोचित अनुपान से ले तो ऋतु शुद्ध होकर आवे, ऋतु के दिन बंद कर एं ।