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कथन करना उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
31.अव्यपदेश्य-विशेषण: व्यपदेश्य का अर्थ है-कथन करना, शब्द द्वारा किसी अर्थ का बोध कराना इसीलिए यहाँ अभिप्रायः वह प्रत्यक्ष ज्ञान अभीष्ट है, जो ‘ अव्यपदेश्य ' हो, अर्थात शब्द द्वारा जिसको बोध न कराया जा सके।

32.आपने लिखा है कि वास्तविक रूप से धन के बारें में कथन करना असम्भव है, और आपने उस जगह पर मंत्री पुत्र और कृषक पुत्र का समायोजन भी किया है, क्या आप इन बातों को झुठला सकते है:-१.

33.केवल अभियुक्त की ओर से यह कथन करना कि उसे बरेली से घर से उठाकर लाया गया, के संबंध में भी कोई प्रतिरक्षा में साक्षी पेश नहीं किया गया, जिससे यह स्पष्ट होता कि अभियुक्त को उसके घर से उठाकर झूंठा फंसाया गया हो।

34.मगर किसी स्वतन्त्र जनसाक्षी को साक्ष्य में पेश न करना तथा पी0डब्ल्यू0-1 हरेन्द्र चौधरी द्वारा एक दो व्यक्तियों से गवाही के लिए कहना तथा पी0डब्ल्यू0-4 कानि0 तालिब हुसैन द्वारा 3-4 व्यक्तियों से गवाही के लिए कहने का कथन करना फर्द बरामदगी को संदिग्ध बना देता है।

35.वह इस ऋचा के द्वारा कहा गया है-क्रियावान (जो कर्मकाण्ड कर चुका है) श्रोत्रिय (वेदज्ञ), ब्रह्मनिष्ठ, श्रद्धावान् स्वयं एकर्षि (अग्नि अथवा ब्रह्म) में हवन करते हैं तथा जिनके द्वारा विधिपूर्वक शिरोव्रत का पालन किया गया है, उन्हें ही ब्रह्मविद्या का कथन करना चाहिए।

36.पी0डब्ल्यू0-9 महेश राम द्वारा दिनांक 5-5-09 को समय 8 बजे सॉय धामीगॉव बॉस की झाडी के पास खेत मे से पुष्कर राम मृतक द्वारा आवाज लगाना और उसके साथ घर आने का कथन करना और अभियुक्त हयात राम द्वारा उसे घर छोडने के सम्बन्ध में कहने के तथ्य को सिद्व किया गया है।

37.१ ७. बुजुर्ग व्यक्तियों के आगे के जीवन की कहानी कहने से पहले उनके पीछे की जानकारी आवश्यक है, अगर कोई बुजुर्ग किसी प्रकार से अपने ग्रहों की पीडा को शमन करने के उपाय कर चुका है, तो उसे ग्रह कदापि पीडा नहीं पहुंचायेगा, और बिना सोचे कथन करना भी असत्य माना जायेगा।

38.हथेलियों के आकार, रंग व उनकी रचना, मुख्य व गौण रेखाओं के पूरे प्रवाह व उनकी रचना, अन्य चिह्नों के रंग, आकार व स्थान, अंगूठों तथा उंगलियों के आकार, उनके जोड़ों, पोरों, व पर्वतों की रचना आदि समस्त विषयों का गहन अध्ययन तथा सही विश्लेषण कर फल कथन करना ही हस्त सामुद्रिक का कार्य है।

39.जहां कहीं भी कानूनी मान्यता के सिद्धान्त से प्रतिनिधिक तौर पर दायित्व बनता है और एक व्यक्ति जो कि अन्यथा अपराध कारित करने में दायी नहीं है ऐसा सम्बन्धित कानून में विशिष्टतया प्रावधान होना चाहिए। भा. द.स ं. की धारा 192 या 199 में ऐसा कोई प्रतिनिधिक सिद्धान्त नहीं है अतः परिवादी को अपने परिवाद में प्रत्येक अभियुक्त के विषय में ऐसा विशिष्टिक कथन करना चाहिए था।

40.अभियुक्तगण द्वारा धारा 313 दंड प्रक्रिया संहिता के बयान में कथित उपरोक्त कथन विश्वसनीय प्रतीत नहीं होते हैं और केवल अपने आप को सजा से बचाने हेतु झूठे कथन करना प्रतीत होते हैं, क्योंकि अभियोजन पक्ष द्वारा परीक्षित प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों ने अभियोजन पक्ष की कहानी का पूरी तरह से समर्थन किया है, जबकि अभियुक्तगण की ओर से अपने कथन के समर्थन में कोई सफाई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी है।

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