मधुकर जी जाति से वणिक, पेशे से पत्रकार, विचारों से विप्र, कर्म से योगी, मानस में एक कवि को साथ लिए उन दिनों पत्रकार हुआ करते थे जब रांगे के फॉण्ट जमा करता था कम्पोजीटर फिर उसके साथ ज़रूरत के मुताबिक ब्लाक फिट कर मशीनिस्ट को देता जो समाचार पत्र छपता था ।
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ये बात अलग थी कि मैं उस वक्त के चलन के हिसाब से उनके पास अतुकांत कविता ले कर जाता था और वे कुछ ही मिनटों में मेरी किसी भी अतुकांत कविता को 16 मात्रा वाली तुकांत कविता में बदल डालते थे और हाथों हाथ कम्पोजीटर को आवाज दे कर वेनगार्ड के कम्पोज हो रहे अंक में छापने के लिए दे भी देते थे।
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ये बात अलग थी कि मैं उस वक्त के चलन के हिसाब से उनके पास अतुकांत कविता ले कर जाता था और वे कुछ ही मिनटों में मेरी किसी भी अतुकांत कविता को 16 मात्रा वाली तुकांत कविता में बदल डालते थे और हाथों हाथ कम्पोजीटर को आवाज दे कर वेनगार्ड के कम्पोज हो रहे अंक में छापने के लिए दे भी देते थे।
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इसके अलावा बचपन की जो बात मुझे याद रह गई है वह यह है कि व्यासजी ने अपनी पारिवारिक परिस्थितियों से विवश होकर एक प्रेस में कम्पोजीटर के रूप में काम करना शुरू किया था, और जब मैं हाई स्कूल की कक्षा में अपने हस्तलिखित पत्र 'भूषण' के लिए फार्म छपाने गया था तो व्यासजी को एक केस के सामने स्टूल पर बैठे देखा था।
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ग्लेशियर बाद में गलते हैं और हिमालय प्रेस नाम का हिंदी छापाखाना पहले बंद हो जाता है पंचम राम समेत बारह कम्पोजीटर और प्रूफ रीडर अकालनिवृत्त हो जाते हैं यों, बगैर कलफ के साफ धोती-कुरता पहनने वाली एक दर्जन साइकिल नागरिकताएं किसान बना दी जाती हैं मजदूर बना दी जाती हैं और कुछ के बारे में पता नहीं है कि वे क्या बना दी जाती हैं
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वहां सबके सम्पर्क सूत्र थे देहरादून के एकमात्र रजिस्टर्ड कवि, सलाहकार, संपादक, यारों के यार, सब लिखने वालों के लिए चाय, बीड़ी, सिगरेट, दारू और उधार का जुग़ाड़ करने वाले, सब मित्रों की रचनाओं के पहले पाठक और श्रोता और सबके लिए मिलन स्थली के स्थायी ठीये वैनगार्ड प्रेस के कर्ता धर्ता और वेनगार्ड नाम के उस वक्त के भारत के एकमात्र द्विभाषिक अखबार के संपादक, प्रूफरीडर, कम्पोजीटर, क्लर्क, एकांउटेंट यानी ऑल इन वन सुखवीर विश्वकर्मा उर्फ कविजी।