यही भावात्मक एकता का स्थायी आधार बनेगा, भूमि का कण-कण पवित्र बन जायेगा, व्यक्ति की श्रद्धा, आस्था का रूप धारण कर उसकी कर्मशक्ति को प्रेरित कर उसमें से देवत्व प्रकट कर सकेगी।
32.
आत्म-ज्ञानी उसमें विवेकरूपी गोली मारता है, निशाना ठीक बैठता है, पहली सञ्चित कर्मशक्ति समाप्त होजाती है, फिर आगे छलांग नहीं लग सकती ; पर, जो छलांग लगाई जाचुकी है वह अवश्य पूरी होगी।
33.
अपनी सारी महत्वाकांक्षा और कर्मशक्ति को लो, जो आप अपनी उपरिमुखी गतिशीलता में उण्डेल रहे हैं और इसके बनिस्बत इसे परमेश्वर की उपस्थिति का आनन्द उपजाने में और धर्मशास्त्र में प्रगट की गई ‘उसकी' मनसा की आज्ञाकारिता के लिए, एक आत्मिक जोश में उण्डेल दो।
34.
पित्तप्रकृति व्यक्ति की उर्जा और कर्मशक्ति यदि उचित लक्ष्यों की ओर उन्मुख हों, तो वे मूल्यवान गुण हो सकती हैं, किंतु उसका संवेगात्मक तथा गतिशीलता संबंधी असंतुलन पालन की कमियों के साथ मिलकर अपने को उच्छॄंखलता, उद्दंड़ता तथा आपे से बाहर होने की स्थायी प्रवृत्ति में व्यक्त कर सकते हैं।