कहना पड़ा क्यों भाई सुलेमान आखिर यह सब क्या बड़बड़ा रहे हो? वह तुनक कर बोला मियाँ कलमघसीट अब तक जब भी कोई गम्भीर लेख लिखते रहे उनमें सर्वप्रथम मुल्क के अवाम के ऊपर महँगाई की मार ही मुख्य विषय वस्तु रहा करती होगी।
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वह परमाणु बमों का विस्फोट व रासायनिक बमों की वर्षा कर सकता है तो क्या उसकी पराधीनता व गुलामी को स्वीकार कर लिया जाय व समाजवाद तथा साम्राज्यवाद की चाकरी की जाय, समाजवाद से नाता तोड़ लिया जाय, ऐसा भीरुपन तो कोई कलमघसीट पूंजीवादी लेखक ही प्रदर्शित कर सकता है।
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मैं सोचने लगा कुछ देर उपरान्त मैंने कहा भाई शर्मा जी क्या आप के साहेबजादे किसी कर्मकाण्डी के चक्कर में तो नहीं पड़े हैं, जो ठकुरसोहाती अस्त्र का प्रयोग कर उन्हें दिग्भ्रमित कर दिए हो? मेरे इस प्रश्न को सुनकर शर्मा जी बोले कलमघसीट भाई क्या बताऊँ मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है।
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मेरी इतनी बात सुनकर सुलेमान ने कुर्सी पर से छलाँग सा लगाया और थोड़ा दूर खड़ा होकर बोला यार कलमघसीट अच्छा यह बताओ कि इन नेताओं ने अपने महलों में कुत्ते तो अवश्य ही पाल रखे होंगे, साथ ही इनके पेट्स ए.स ी. में रहते होंगे, इन कुत्तों पर प्रतिदिन कितना खर्च आता होगा क्या इसका हिसाब किताब इनके पास होगा?
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शासक वर्ग के टुकड़ों पर पलने वाले बुर्जुआ कलमघसीट और भाड़े के पत्रकार यह बताते नहीं थकते कि भारत में बहुदलीय संसदीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था होने की वजह से जनता को पर्याप्त विकल्प मिल जाते हैं और यदि एक पार्टी सत्ता में आने के बाद अच्छा प्रदर्शन नहीं करती तो जनता को यह अधिकार है कि वह अगले चुनावों में उस पार्टी को हटाकर सत्ता की बागडोर दूसरी पार्टी को सौंपे दे।
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अपने प्रवचन में आगे वह बोले डियर कलमघसीट आजकल दर्शक ऐसा टी. वी. चैनल ही देखते हैं, जिसमें ऐंकरिंग करने वाला पत्रकार घण्टों बेमतलब चीखता, चिल्लाता हो, चैनल की टी. आर. पी. बढ़ाने के लिए नदी, तालाब, अखाड़े और जलती आग में कूद पड़ने की क्षमता रखता हो, साथ ही पति-पत्नियों के बीच 63 के आँकड़े को 36 में तब्दील कराकर उसका लाइव टेलीकास्ट करता हो।
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इंग्लैंड में जॉन वैनब्रू द्वारा ईसप शीर्षक के अधीन नाटक को रूपांतरित किया गया तथा 1697 में लंदन में ड्यूररी लेन, रॉयल रंगमंच पर पहली बार प्रदर्शन किया गया, और अगले बीस सालों तक लोकप्रिय रहा.[75] यह राजनीतिक गुटबाजी, राजवंशीय संकट और युद्ध का एक काल था और अधिक समय नहीं हुआ था जब ग्रब स्ट्रीट के सभी दलों के कलमघसीट सामयिक परिस्थितियों के लिए तुकांत दंतकथाओं को लागू करने के फैशन का अनुसरण कर रहे थे-अधिकतर गुमनाम रूप से.