भावार्थ:-जो लोग वेदों को बेचते हैं, धर्म को दुह लेते हैं, चुगलखोर हैं, दूसरों के पापों को कह देते हैं, जो कपटी, कुटिल, कलहप्रिय और क्रोधी हैं तथा जो वेदों की निंदा करने वाले और विश्वभर के विरोधी हैं, ॥ 1 ॥
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इस पर वसुंधरा चमक उठी और बड़ी तेजी से बोली, “ अरे! ओ संग्राम कलहप्रिय नारद! मैं धन्य-वन्य कुछ नहीं हूं, धन्य तो वे पर्वत हैं जो मुझे भी धारण करने के कारण ' भूधर ' कहे जाते हैं और सभी प्रकार के आश्चर्यों के निवास स्थान भी ये ही हैं | ”