परीक्षण पूरा हो चुका है, बहस समाप्त हो चुकी है, निर्णय शेष है लेकिन यह सब होते हुए भी पाकिस्तान ने रट लगा रखी है कि अज़मल आमिर कस्साब और फहीम अन्सारी को उसके सुपुर्द किया जाए।
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दो हफ्ते से एक पाकिस्तानी मित्र के साथ हूँ और इत्तेफाक़ से आज ही उन्होने माँ के पैरों में जन्नत होने की बात कहते हुए जन्नत, हज़रत मूसा, एक कस्साब और उसकी माँ का किस्सा सुनाया था।
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परीक्षण पूरा हो चुका है, बहस समाप्त हो चुकी है, निर्णय शेष है लेकिन यह सब होते हुए भी पाकिस्तान ने रट लगा रखी है कि अज़मल आमिर कस्साब और फहीम अन्सारी को उसके सुपुर्द किया जाए।
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दो हफ्ते से एक पाकिस्तानी मित्र के साथ हूँ और इत्तेफाक़ से आज ही उन्होने माँ के पैरों में जन्नत होने की बात कहते हुए जन्नत, हज़रत मूसा, एक कस्साब और उसकी माँ का किस्सा सुनाया था।
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हाँ इतना ज़रूर है कि सुरक्षा व्यवस्था भारत में भी कड़ी होनी चाहिए और जितने जूते खुल रहे हैं उससे कहीं ज़्यादा लोगों के जूते खुलने चाहिए ताकि अफज़ल और कस्साब जैसे मुजाहिदीन दरिन्दे अपने खूनी खेल को शुरू ही न कर सकें.
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२. सवाल यह है कि एक, आम भारतीय अमेरिका में ही नहीं बल्कि भारत में भी बेहतर और कड़ी सुरक्षा व्यवस्था चाहता है जिससे कस्साब और अन्य पाकिस्तानी हत्यारे अपनी जिहादी दरिंदगी दिखाने से पहले ही निहत्थे किये जा सकें.
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हाँ इतना ज़रूर है कि सुरक्षा व्यवस्था भारत में भी कड़ी होनी चाहिए और जितने जूते खुल रहे हैं उससे कहीं ज़्यादा लोगों के जूते खुलने चाहिए ताकि अफज़ल और कस्साब जैसे मुजाहिदीन दरिन्दे अपने खूनी खेल को शुरू ही न कर सकें.
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गौरतलब बात यह है कि इन सभी आतंकियों को सरकार दस-दस साल से सरकारी महमान बनाकर पाल रही है आज तक अदालतें सजा सुनाने तक नहीं पहुँची जबकि कस्साब ओर अफजल गुरू के मामलों दो साल के अन्दर ही सजा सुना कर ठिकाने लगा दिया गया।
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उस अनदिखते दायरे से बाहर भी कई तबके के लोग थे-मसलन मोची, बढ़ई, मोटर गाड़ियों की मरम्मत करनेवाले मेकेनिक, रिक्शा-ठेला खींचनेवाले और चाय-पान की गुमटी चलानेवाले और हलवाई और कस्साब, सब्जीफरोश और चना-चबैना और भेलपुरी बेचनेवाले फुटपाथिए वगैरह... ।
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आप तो जूताकार ही हैं न? २. सवाल यह है कि एक, आम भारतीय अमेरिका में ही नहीं बल्कि भारत में भी बेहतर और कड़ी सुरक्षा व्यवस्था चाहता है जिससे कस्साब और अन्य पाकिस्तानी हत्यारे अपनी जिहादी दरिंदगी दिखाने से पहले ही निहत्थे किये जा सकें.