जब एक पुलिस वाला किसी आहत व्यक्ति को कानूनी उपचार प्रदान करने के बजाय उसके साथ अभद्र व्यवहार कर रहा होता है तो उसे ज्ञात ही नहीं होता है कि वह संविधान के अनुच्छेद-14, 19, 21 एवं 32 का तो उल्लंघन कर ही रहा है।
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(11) हिन्दी मीडिया इस मामले में मुस्लिमों को खलनायक बनाने का एक भी मौका नहीं चूकता और इस तथ्य को कभी रेखांकित नहीं करता कि इस विवाद के शुरू होने से लेकर अब तक मुस्लिम पक्ष की ओ से गैर कानूनी उपचार की एक भी कोशिश नहीं की गयी है.
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(11) हिन्दी मीडिया इस मामले में मुस्लिमों को खलनायक बनाने का एक भी मौका नहीं चूकता और इस तथ्य को कभी रेखांकित नहीं करता कि इस विवाद के शुरू होने से लेकर अब तक मुस्लिम पक्ष की ओ से गैर कानूनी उपचार की एक भी कोशिश नहीं की गयी है.
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जब एक पुलिस वाला किसी आहत व्यक्ति को कानूनी उपचार प्रदान करने के बजाय उसके साथ अभद्र व्यवहार कर रहा होता है तो उसे ज्ञात ही नहीं होता है कि वह संविधान के अनुच्छेद-१ ४, १ ९, २ १ एवं ३ २ का तो उल्लंघन कर ही रहा है।
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(11) हिन्दी मीडिया इस मामले में मुस्लिमों को खलनायक बनाने का एक भी मौका नहीं चूकता और इस तथ्य को कभी रेखांकित नहीं करता कि इस विवाद के शुरू होने से लेकर अब तक मुस्लिम पक्ष की ओ से गैर कानूनी उपचार की एक भी कोशिश नहीं की गयी है.
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क्या कभी किसी उच्चतम स्तर के चिकित्सा अधिकारी ने नीचे के स्तर के चिकित्सक से यह सवाल किया है कि उसके द्वारा अधिक संख्या में बीमारों का उपचार क्यों किया गया? यदि नहीं तो पुलिस थाने से भी यह नहीं पूछा जाना चाहिये कि उसने अधिक फरियादियों की फरियाद दर्ज क्यों की? क्योंकि पुलिस भी तो आहत व्यक्ति को कानूनी उपचार प्रदान करती है।