अस्पताल में कामला रोगी को इंजेक्शन लगाने के बाद उस ‘ नीडिल ' को परिवर्तित नहीं किया जाए और दूसरे किसी को इंजेक्शन लगा दिया जाए तो उसे भी कामला रोग हो जाता है।
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पित्ताशय से भोजन की पाचन क्रिया में भाग लेने के लिए पित्त निकलता रहता है, लेकिन जब यकृत विकृति से या अन्य किसी कारण से पित्त रक्त में मिलने लगता है तो कामला रोग की उत्पत्ति होती है।
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कामला रोग चरम पर आ जाने पर मूत्र का रंग गाढ़ा पीला हो जाता है और बदन पर सूजन आने लगती है यह सूजन दोनों पैरों से शुरू होकर ऊपर की ओर बढ़ती है तथा मुंह तक आ जाती है ।
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इस रोग में पित्त को विरेचन द्वारा बाहर निकालने के लिए पुनर्नवा की जड़ का महीन पिसा-छना चूर्ण आधा-आधा चम्मच, ऊपर बताए गए 2-2 चम्मच काढ़े और आधा कप पानी के साथ पीने से 2-4 दिन में ही कामला रोग का शमन हो जाता है।
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* अनन्तमूल की जड़ की छाल 2 ग्राम और 11 कालीमिर्च दोनों को 25 मिलीलीटर पानी के साथ पीसकर 7 दिन पिलाने से आंखों एवं शरीर दोनों का पीलापन दूर हो जाता है तथा कामला रोग से पैदा होने वाली अरुचि और बुखार भी नष्ट हो जाता है।